V D Savarkar Quotes

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V.D. Savarkar disagreed with those Hindus who expected much from the recognition of the common origin of Hindus and Indian Muslims: “Some well-meaning but simple-minded Hindus amuse themselves with the thought … that inasmuch as the majority of Indian Moslems also are in fact allied to us by race and language … they could easily be persuaded to acknowledge this homogeneity and even blood relation with the Hindus and merge themselves into a common National Being if but we only remind them of these affinities and appeal to them in their name. … As if the Moslems do not know it all!! The fact is that the Moslems know of these affinities all but too well: the only difference [is] that while the Hindus love these affinities which bind the Hindu to a Hindu…—the Moslems hate the very mention of them and are trying to eradicate the very memory of it all.
Koenraad Elst (Decolonizing The Hindu Mind: Ideological Development Of Hindu Revivalism)
In his survey, Alexander came to know that although these world-forsakers, ascetics, recluses and others were all wandering alone, their opinions exerted a powerful influence because of their disinterestedness, fearlessness and their disregard for any consequences whatever, upon the governments of Indian republics and also on the monarchies.
V.D. Savarkar
The term Hindutva was invented in this sense by V. D. Savarkar in 1923 and was adopted by the BJP as its ideology in 1989. Therefore, not all Hindus are or need be supporters of Hindutva despite the assumption of the latter that they are. As a belief system Hinduism accommodates a range of beliefs and sometimes even non-belief. The sect, in contrast, has always had a particular definition that its followers observe, as with Hindutva. So far, those identified with Hindutva have tended to be viewed as a minority group within the majority community of the religion, Hinduism. This could of course change. Does Hindutva lack the confidence and security of actually being the majority community despite its claims to the contrary?
Romila Thapar (The Public Intellectual in India)
Before beheading one such Brahmin, when Alexander asked him as to why he instigated a certain Indian ruler against the Greeks, he fearlessly and firmly replied that it was his most sacred tenet and that if he were to live, he ought to live honorably, else he should die honorably.
V.D. Savarkar
ग्रामे-ग्रामे स्थितो देवः देशे देशे स्थितो मखः। गेहे गेहे स्थितं द्रव्यं धर्मश्चैव जने जने॥ (—भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व)
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
राजधानियों और किलों की आखिर औकात ही कितनी होती है! अपनी स्वतंत्रता वापस लेने के लिए जो लोग दृढ़प्रतिज्ञ हुए, उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने हृदय को ही अभेद्य दुर्ग बना लिया।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
सदियों की दासता के कारण कुछ दुर्बल-हृदय लोग कल्पना ही नहीं कर पाते थे कि मुसलमानों के विरुद्ध युद्ध छेड़कर हिंदू यशस्वी भी हो सकते हैं। दूसरी तरह के लोग वे थे जो बेशरमी की हद पार कर या लाभ-हानि का नाप-तौल करके ही कुछ करते थे अथवा जो मुसलिम साम्राज्य में ही अपना हित देखते थे।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
राज्य यह कहते हुए अपने प्रख्यात शिष्य के ही हवाले कर दिया कि ‘‘यह शिवाजी का नहीं, अपितु धर्म का राज्य है।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
शिवाजी महाराज का देहांत मराठी इतिहास का आरंभ है। उन्होंने हिंदूप्रतिष्ठान की नींव डाली। उसका हिंदू साम्राज्य में परिवर्तन होना अभी शेष था। वह परिवर्तन उनके देहांत के उपरांत हुआ। जिस प्रकार नाटक का सूत्रधार सभी कलाकारों तथा उनके कार्य के बारे में सूचना देकर खुद परदे के पीछे चला जाता है और उसके बाद नाटक या महाकाव्य शुरू होता है, उसी प्रकार जिन व्यक्तियों के माध्यम से यह महान् कार्य संपन्न होना था, उनका मार्गदर्शन कर शिवाजी महाराज स्वयं तिरोधान हो गए।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
सिंधुस्थान कोई छोटा सा क्षेत्रीय संघ नहीं है। वह एक राष्ट्र है अर्थात् ‘राज्ञः राष्ट्रम्’। इस अर्थ में वह सदा किसी एक शासन के अधीन नहीं रहा, तथापि एकता की भावना के कारण निश्चित रूप से एक अखंड राष्ट्र था। वहाँ जिस संस्कृति का विकास हुआ तथा जो लोग इस राष्ट्र के नागरिक बने, उन दोनों को वैदिक काल की प्रथा के अनुसार ‘सिंधु’ कहा जाता।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
हिंदू तथा उनकी संस्कृति मानव के निराशा तथा निरुत्साही आत्मा को शीतल चंद्रप्रकाश के समान सदैव आनंद तथा उत्साह का स्रोत बनी हुई है।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
ऐसे विश्वधर्म का क्या उपयोग, जिसने हिंदुसथान को असुरक्षित और असजग अवस्था में तो छोड़ा ही, साथ-साथ अन्य राष्ट्रों की क्रूरता और पशुता भी कम न करा सका। संरक्षण का एकमात्र मार्ग अब नजर आता है, तो वह है—राष्ट्रीयता की भावना से उत्पन्न, बलशाली एवं पराक्रमी पुरुषों की समर्थ शक्ति। अवास्तव तत्त्वज्ञान के जंजाल में फँसकर हिंदुस्थान ने अपना रक्त तो बहाया, परंतु उसका परिणाम विपरीत हुआ।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
शालिवाहन संवत् १५५२ (ई.स. १६३०) में शिवाजी महाराज का जन्म हुआ।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
मराठों ने सीधे उसकी छावनी पर धावा बोलकर, मानो सिंह की गुफा में घुसकर उसकी अयाल नोंचने की ही हिम्मत दिखाई। खुद बादशाह ही उन्हें वहाँ मिल जाता, लेकिन उसके भाग्य से वह उस समय अपने सुवर्ण कलशवाले वस्त्रागार में नहीं था।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
यहाँ ‘आर्य’ शब्द का प्रयोग इसीलिए किया गया है ताकि सिंधु नदी के इस ओर के अपने वैभवशाली राष्ट्र के तथा जातियों के सभी अनिवार्य घटकों का उसमें समावेश हो। इसमें वैदिक या अवैदिक, ब्राह्मण अथवा शूद्र आदि भेद नहीं किया गया। केवल समान संस्कृति, रक्त-संबंध देश तथा राज्यसंस्था का उत्तराधिकार जिन्हें प्राप्त हुआ है, वे सभी ‘आर्य’ कहलाते हैं।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
आर्यावर्त दक्षिणापथ अथवा जंबुद्वीप और भारतवर्ष हम लोगों की राजनीतिक अथवा सांस्कृतिक विशेषताएँ स्पष्ट रूप से प्रकट करने हेतु असमर्थ सिद्ध हुए। हिंदुस्थान नाम में सामर्थ्य विद्यमान थी। सिंधु से सागर तक की भूमि हम लोगों की जन्मभूमि है—यह माननेवाले तथा सिंधु के इस तट पर निवास करनेवाले लोगों को स्पष्ट रूप से ज्ञात हो गया कि इस भूमि को एक ही नाम हिंदुस्थान से पहचाना जाता है।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
हिंदुस्थान की प्रतिष्ठा तथा स्वातंत्र्य अबाधित केवल हिंदुस्थान की ही नहीं, अपितु सारे हिंदुत्व की संस्कृति तथा सार्वजनिक जीवन से जुड़ी एकता को प्रस्थापित करने का कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण समझा गया था। इसी हिंदुत्व के लिए सैकड़ों रणभूमियों पर युद्ध करना पड़ा तथा हर प्रकार की राजनीतिक युक्ति का भी प्रयोग करना पड़ा। ‘हिंदुत्व’ शब्द हमारे संपूर्ण राजनैतिक जीवन की रीढ़ की हड्डी बन गया। इतना कि कश्मीर के ब्राह्मणों की यातनाओं से मलाबार के नायरों की आँखें अश्रुपूरित हो जातीं।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
जब तक राष्ट्रीय तथा वांशिक भेद मानव को पशुता तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रबल हैं तब तक अपनी आत्मा के प्रकाश के अनुसार किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक अथवा राजकीय जीवन में उन्नति करनी है तो राष्ट्रीय तथा जातीय बंधनों से उत्पन्न शक्ति की अवहेलना करना हिंदुस्थान के लिए उचित नहीं होगा।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
जब तक राष्ट्रीय तथा वांशिक भेद मानव को पशुता तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रबल हैं तब तक अपनी आत्मा के प्रकाश के अनुसार किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक अथवा राजकीय जीवन में उन्नति करनी है तो राष्ट्रीय तथा जातीय बंधनों से उत्पन्न शक्ति की अवहेलना करना हिंदुस्थान के लिए उचित नहीं होगा। इसीलिए विश्वबंधुत्व आदि शब्दों का केवल वाणी में ही प्रयोग किए जाने के कारण तथा कृति विहीनता के कारण विद्वानों के मन में घृणा उत्पन्न हुई। बहुत खेदपूर्वक उन्होंने कहा— ये त्वया देव निहिता असुराश्चैव विष्णुना। ते जाता म्लेच्छरूपेण पुनरद्य महीतले॥ व्यापादयन्ति ते विप्रान् घ्रन्ति यज्ञादिकाः क्रियाः। हरन्ति मुनि कन्याश्च पापाः किं किं न कुर्वन्ति॥ म्लेच्छाक्रांते च भूलोके निर्वषट्कारमंगले। यज्ञयागादि विच्छेदाद्देवलोकेऽवसीदति॥ (—गुणाढ्य२७) जिस नितांत रम्य भूमि ने श्रद्धायुक्त अंतःकरण से भिक्षु वस्त्रों को अंगीकृत किया था, खड्ग को त्यागकर हाथों में सुमरिनी लेकर भगवान् का नाम जपते हुए अहिंसा की प्रतिज्ञा की थी, उस भूमि को जलाकर जिन्होंने वीरान बना दिया, उन शक, हूणों की हिंस्र टोलियों को सिंधु के पार खदेड़ दिया गया तथा एक नई सुदृढ़ राजसत्ता स्थापित की गई। उस समय के राष्ट्रीय नेताओं को इस बात का अनुभव हुआ होगा कि यदि धर्म ने भी इस कार्य को सहायता दी तो कितना प्रचंड शक्तिसामर्थ्य निर्माण किया जा सकता है।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
हिंदुस्थान में ही परिपक्व हुए तथा हिंदुस्थान को ही अपनी मातृभूमि मानकर उसे पूजनेवाले अनेक श्रेष्ठ अर्हताओं तथा भिक्षुओं के महान् कर्म संघों ने मानव को अपनी मूल पाशवी प्रवृत्तियों से दूर करने का प्रथम तथा यशस्वी प्रयास करने का संकल्प करने के पश्चात् उसका प्रयोग अनेक शतकों तक किया। इसी एक बात से हमारी भावनाएँ इस प्रकार आंदोलित हो उठती हैं कि उन्हें शब्दों में प्रकट करना असंभव है। जिस संघ के लिए हमारे मन में इस प्रकार की भावनाएँ विद्यमान हैं। उस परमज्ञानी बौद्ध भगवान् के लिए हम किन शब्दों में आदर व्यक्त कर सकते हैं? हे तथागत बुद्ध! अत्यंत क्षुद्र कोटि के हीनतम मानव के रूप में हमारे दैन्य तथा अल्पता को ही तुम्हारे चरणों पर अर्पण करने हेतु हम तुम्हारे सम्मुख उपस्थित होने का साहस नहीं कर सकते। तुम्हारे उपदेश का सार हमारी बुद्धि ग्रहण नहीं कर सकती। तुम्हारे शब्द ईश्वर के मुख से निकले शब्द हैं।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
(मनु)। यह दुष्टता जब तक इस विश्व में हावी रहेगी और जब तक आकाश में चमकने वाले तारों की भाँति दूर से ही सुहानेवाले सत्य धर्म के विचार इस दुष्टता की पराजय नहीं करते, तब तक कोई भी राष्ट्र अपना ध्वज त्यागकर विश्वबंधुत्व का ध्वज फहराने के लिए मान्यता नहीं देगा।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
स्पेन के कैथोलिक इंग्लैंड के सिंहासन पर कैथोलिक पंथ के राजा को आसीन करने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें सहानुभूति दरशानेवाला एक प्रमुख गुट इंग्लैंड में प्रत्यक्ष रूप से विद्यमान था। उसी प्रकार बौद्ध धर्म के अनुकूल विचार रखनेवाले कुछ आक्रमणकारियों को भी हिंदुस्थान में चल रहे युद्ध के समय गुप्त रूप से सहानुभूति दिखानेवाले अनेक बौद्धधर्मीय लोग यहाँ भी विद्यमान थे। इसके अतिरिक्त बाहर के बौद्धधर्मीय राष्ट्रों ने निश्चित राष्ट्रीय तथा धार्मिक उद्देश्य से हिंदुस्थान पर आक्रमण किए थे। इन घटनाओं के स्पष्ट प्रमाण हम लोगों के प्राचीन ग्रंथों में विभिन्न स्थानों पर मिलते हैं।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
शालिवाहन संवत् १६०२ (ई.स. १६८०) में शिवाजी महाराज का स्वर्गवास हो गया। उसके कुछ ही महीने पश्चात् श्रीरामदास स्वामीजी ने भी महाप्रयाण किया।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
उस समय हिंदुस्थान विश्वबंधुत्व तथा अहिंसा के नशे में इतना डूबा हुआ था कि आक्रमणकारियों का प्रतिकार करने की इसकी शक्ति ही नष्ट हो चुकी थी। इसी हिंदुस्थान में अन्याय के प्रति लोगों के मन में कटु द्वेष प्रज्वलित करने का तथा शाश्वत प्रतिकार-शक्ति का वरदान प्राप्त करा देने के लिए दोनों के लिए पूज्य, पूजा-प्रार्थना तथा मठ-संस्थाओं को नष्ट करना आवश्यक था।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
इस आर्य देश तथा राष्ट्र पर हूणों के राजा न्यूनपति तथा उसके बौद्धपंथीय सहायकों ने एक साथ मिलकर जो आक्रमण किया तथा जिसका लाक्षणिक और यथार्थ, परंतु संक्षिप्त वर्णन हम लोगों के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, उसका निर्देश हम यहाँ करनेवाले हैं। इस प्राचीन ग्रंथ में कुछ पौराणिक प्रकार से ‘हहा नदी के तट पर प्रचंड युद्ध किस प्रकार किया गया, बौद्धों की सेनाओं का शिविर चीन देश में किस कारण स्थापित हुआ’ (चीन देशमुपागम्य युद्धभूमीमकारयत्) विभिन्न बौद्ध राष्ट्रों की सहायक सेनाएँ उन्हें किस प्रकार आकर मिलीं तथा इस कारण उनके सैन्य की संख्या में कितनी वृद्धि हुई (श्याम देशोद्भलक्षास्तथा लक्षाश्च जापकाः। दश लक्ष्याश्चीनदेश्या युद्धाय समुपस्थितः॥) तथा अंत में बौद्धों को किस प्रकार पराभूत होना पड़ा और इस पराजय के फलस्वरूप उन्हें कितना जबरदस्त दंड मिला—आदि का वर्णन किया गया है। अंततः बौद्धों को प्रकट रूप से अपनी राष्ट्रीय ध्येयाकांक्षाओं को स्वीकार करना पड़ा तथा उन्हें त्यागना पड़ा। भविष्य में किसी प्रकार के राजकीय उद्देश्य से हिंदुस्थान में प्रवेश न करने की स्पष्ट तथा बंधनकारक शपथ उन्हें लेनी पड़ी। हिंदुस्थान सभी के साथ सहिष्णुतापूर्वक आचरण करता था। अतः बौद्धों को व्यक्तिगत रूप से किसी तरह का भय होने का कोई कारण नहीं था। हिंदुस्थान की स्वतंत्रता तथा राजनीतिक जीवन के लिए संकट उत्पन्न करनेवाली सभी आकांक्षाओं का त्याग करना उनके लिए आवश्यक था। ‘सर्वैश्च बौद्धवृदैश्च तत्रैव शपथं कृतम्। आर्यदेशं न यास्यामः कदाचिद्राष्ट्रहेतवे॥’ (—भविष्यपुराण, प्रतिसर्ग पर्व)
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
उस पत्र में लिखा है—‘‘आचार्य दादाजी कोंडदेव और अपने साथियों के साथ सह्याद्रि पर्वत के शृंग पर ईश्वर को साक्षी मानकर लक्ष्य प्राप्ति तक लड़ाई जारी रखने और हिंदुस्थान में ‘हिंदवीस्वराज्य’—हिंदू-पदपादशाही—स्थापित करने की क्या आपने शपथ नहीं ली थी? स्वयं ईश्वर ने हमें यह यश प्रदान किया है और हिंदवीस्वराज्य के निर्माण के रूप में वह हमारी मनीषा पूरी करनेवाला है। स्वयं भगवान् के ही मन में है कि यह राज्य प्रस्थापित हो।’’ शिवाजी महाराज की कलम से
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
विजयनगर के पतन के बाद स्वतंत्र राजा—छत्रपति—के रूप में स्वयं का अभिषेक कराने की हिम्मत किसी भी हिंदू राजा की नहीं हुई थी। इस राज्याभिषेक से मुसलिम सेना की अजेयता का भ्रम दूर हुआ। इसके पश्चात् मुसलमान रणक्षेत्र में कभी भी हिंदुओं की बराबरी नहीं कर सके।
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
धर्म एक अत्यधिक प्रभावी शक्ति है। लूटपाट करने की लालसा भी ऐसी ही एक प्रबल शक्ति है। जब यह शक्ति धर्मभावना पर हावी हो जाती है, तब उनके संयोग से एक भयावह दानवी शक्ति उपजती है। वह मानव का संहार करती है तथा प्रदेशों को जलाकर नष्ट कर देती है।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
धर्म के लिए प्राण देने चाहिए। शत्रुओं का संहार कर प्राण तजने चाहिए। संहार करते हुए अपना राज्य हासिल करना चाहिए। सभी मराठों को संगठित करना चाहिए। महाराष्ट्र धर्म की श्रीवृद्धि करनी चाहिए। अगर तुम अपने कर्तव्य से विमुख हुए तो पूर्वजों के उपहास के पात्र बनोगे।’’ श्री रामदास स्वामी की ये सीखें
V.D. Savarkar (Hindu-Padpaadshahi (Hindi Edition))
The Hindutva view of Islam is characterized by a progressive softening from V.D. Savarkar through M.S. Golwalkar down to the present BJP. And even Savarkar was not uniformly the hawk he is always made out to be. In general, the organized Hindutva movement has never produced a very sophisticated discourse on Islam, merely a few sweeping generalisations whether in a hostile or a flattering sense. In the founding statements of the RSS, there is no trace of a fundamental critique of Islam, nor is there any in the books and speeches of its leaders.
Koenraad Elst (Decolonizing the Hindu mind: Ideological development of Hindu revivalism)
Oh Muslims! Just think what the Europeans reduced you to after they escaped from the clutches of the Bible, to master the sciences that are beneficial for our times. You were pushed out of Spain, you were subjected to massacres, and you were crushed in Austria, Hungary, Serbia and Bulgaria. Your control over Mughal India was snatched away. They are ruling you in Arabia, Mesopotamia, Iraq and Syria. Just as our [Hindu] yajnas, prayers, Vedas, holy books, penances, curses could not harm the Europeans, so too will your Quran, martyrdoms, namaz, religious lockets make no difference to them. Just as the maulvis sent armies to war in the belief that the men who fought under the banner of Allah would never lose, so did our pundits peacefully sit back to repeat the name of Rama a million times. But none of this prevented the Europeans. With their advanced weapons, they not only decimated the Muslim armies, but they even toyed with the fallen flag of Allah.
V.D. Savarkar
The nation that has no consciousness of its past has no future.
V.D. Savarkar (The Indian War of Independence 1857)
An honest tale speeds best, being plainly told.
V.D. Savarkar (The Indian War of Independence 1857)
पल भर के लिए उसका मन बिलकुल निस्तब्ध, निःशब्द हो गया। परंतु उसके उस बहिर्मन की जड़ता और अंतर्मन दोनों में उस विधान पर अनजाने में न जाने क्या चर्चा हो गई, उसकी वह तल्लीन संज्ञाहीनता हलकी होते ही एक स्पष्ट संदेह उसके मन से निकलकर उसे टोकने लगा
V.D. Savarkar (काला पानी)
ईश्वर यदि सज्जनों का संकटमोचन करने योग्य परम दयालु तथा सर्वसमर्थ है भी, तो वह उन निरपराध सुजनों को पहले ही संकट में क्यों ढकेलता है भला! दुर्जनों को इतना बलवान क्यों बनाता है कि वे उन सज्जनों पर असंगत अत्याचार करें, उन्हें शिकंजे में लें! सज्जनों की परीक्षा के लिए! फिर भगवान् सर्वज्ञ, अंतर्यामी कैसे हो सकते हैं! इस तरह का विधान कि दुष्टों के हाथों से उस भक्त को दारुणिक यंत्रणा, पीड़ा पहुँचाए बिना भगवान् को यह ज्ञात नहीं होता कि यह भक्त खरा है या खोटा, ईश्वर की सर्वज्ञता तथा परम दयालुता को क्या कलंक लगाना ही नहीं
V.D. Savarkar (काला पानी)
प्रायः सभी के सिर झुके हुए तथा आँखें डबडबाई हुई थीं। कम-से-कम मन में तो भय समाया ही हुआ था, चेहरे उतरे हुए थे, पास खड़े व्यक्ति से एक शब्द भी न बोलते हुए; और यदि बातचीत करें भी तो किसी लड़की जैसे शरमाते, सकुचाते, छुईमुई बनते, धीमे स्वर में फुसफुसाते हुए, चार-चार की कतार में निहायत फटीचर वेश में नपे-तुले डग भरते हुए वे चल रहे थे। सिपाही के ‘ठहरो’ कहते ही वे रुक जाते, ‘बैठो’ कहते ही बैठ जाते और ‘उठो’ कहते ही उठ जाते। सौ-सवा सौ लोग जरा भी हो-हल्ला न करते हुए चल रहे थे। इतने शांत, संयत जीवों का वह समुदाय!
V.D. Savarkar (काला पानी)
चालान का अर्थ है उस जहाज घाट का वह गुट, जिसके साथ विभिन्न कारागृहों में पड़े काले पानी के दंडितों को इकट्ठा कर समुद्र पार अंदमान भेजने के लिए लाया जाता है।
V.D. Savarkar (काला पानी)
इस प्रकार इन गरीब, बेचारे, दीन-हीन, दुर्बलों पर अपने माँ-बाप, बीवी-बच्चों से आजीवन बिछुड़ने का प्रसंग थोपकर काले पानी पर असंगत संत्रास तथा कष्ट का शिकार बनाने के लिए इस तरह ले जाया जा रहा था! राजहठ की यह कैसी निष्ठुरता तथा दंड की यह कैसी क्रूरता! जो उन्हें मात्र दुर्दशा में तड़पते देखते हैं अथवा उनकी पीड़ा देखते ही इसकी विवंचना छोड़कर कि वह पीड़ा रोगहारक शल्यक्रिया की है या मारक शस्त्राघात की है, जिनके मन सिर्फ आठ-आठ आँसू बहाती पिलपिली उबासीयुक्त दया का अनुभव करते हैं, ऐसे लोगों के मन में उन घोंघा सदृश हीन-दीन दिखनेवाले चलते हुए दंडितों के प्रति अनुकंपा और हार्दिक सहानुभूति ही उत्पन्न होती और मन-ही-मन क्रोध का उफान यदि किसी के प्रति उमड़ता हो तो वह पुलिसवालों की निर्दय, निष्ठुर, नृशंस, जुल्मी लट्ठबाजी के प्रति। बंदूकों से संगीनें ठूँस-ठूँसकर पुलिसवालों के दल कुछ पीछे, कुछ आगे, कोई डंडे तानकर चारों ओर अंगार उगलते, कठोर स्वर में बरसाते हुए समूह को ठीक उसी प्रकार ठेल-ठेलकर आगे हाँक रहे थे, जैसे कोई कसाई चौपायों के झुंड को आगे ठेलता है। कोई तनिक भी ऊँचे स्वर में बोलता या सुस्ताने की कोशिश करता तो उसे डंडे के बल पर आगे खदेड़ दिया जाता; तनिक भी कोई ‘तू-तड़ाक’ पर उतरता तो पुलिसवाले के तीन-चार डंडे उसकी खोपड़ी पर बरसने लगते। न पूछताछ, न गवाह, न ही कोई प्रमाण। सीधे डंडे से बातचीत। तमाम न्यायनिर्बंध उसी में समाए हुए।
V.D. Savarkar (काला पानी)
ऊपरी तौर पर देखनेवालों को असली अत्याचारी और निर्दयी लगती पुलिस तथा असली दीन-दुखियारे, दुर्बल ‘बेचारे’ लगते ‘चालान’ वाले।
V.D. Savarkar (काला पानी)
सामने जिस सागर में उन्हें अब उतरना था, वह ऊँची-ऊँची विशाल लहरों को लहराता, बाद में उस जहाज घाट पर उन लहरियों से धड़ाधड़ टकराता, उमड़-उमड़कर बहती-छलकती फेनिल लहरियों द्वारा प्रचंड क्रोधावेग से गर्जन-तर्जन के साथ फुफकारता हहर-हहर नाद करता था। दंडितों में से प्रायः सभी ने जीवन में पहली बार सागर दर्शन किया था, इसलिए उस विशाल जलाशय का इस तरह प्रचंड क्रोधावेग से उमड़ता-उछलता-लरजता रूप देखकर उस भीषण दृश्य के आघात के साथ ही उनका दिल धौंकनी के समान धड़कने लगा। एक-दूसरे से बातचीत करना उनके लिए सख्त मना होने के बावजूद इस अनिवार आघात से, किसी से और कुछ उद्गार सुनने की इच्छा से हर एक निकटवर्ती दंडित से खुसुर-फुसुर करने लगा, ‘यही है वह काले पानी का सागर।
V.D. Savarkar (काला पानी)
श्मशान घाट ले जाते समय शव को अगर कुछ अहसास होता हो तो उसे जो लगता होगा, वही काले पानी पर जाते दंडितों को तब होता होगा, जब उन्हें ‘महाराजा’ पर चढ़ाया जाता है। कम-से-कम जिनमें महसूस करने की मानवीयता शेष है, उन्हें यही अहसास होता है कि ‘महाराजा’ एक कब्र है, न कि जहाज। इसमें जो दफनाया गया वह बाहर भी निकलेगा तो काले सागर के उस पार यमलोक में, यमपुरी में, न कि इस लोक में।
V.D. Savarkar (काला पानी)
मनुष्य नृशंस, क्रूर श्वापदों को मनुष्यों की बस्ती से दूर जंगल में खदेड़ सका, परंतु मनुष्य के मन ही में कितने सारे नृशंस श्वापद कैसे घात लगा बैठे, घर बनाकर विचर रहे हैं! मन के तहखाने के ताले जब कभी इस तरह से खुले, वे नृशंस श्वापद तितर-बितर होकर भगदड़ मचाते हैं। तभी इस दारुण सत्य को नकारना असंभव होता है। जिसे हम मानवता, मनुष्यता कहते हैं वह एक सजी-सँवरी क्वेट्टा नगरी है। उसके नीचे भूचालीय राक्षसी वृत्तियों की कई परतें फैली हुई हैं। मात्र दया, दाक्षिण्य, माया-ममता, न्याय-अन्याय की नींव पर ही यह मानवता की क्वेट्टा नगरी उभारी जाने के कारण, इस भ्रम में कि वह अटल-स्थिर-दृढ़ होनी चाहिए, जो लापरवाही से घोड़े बेचकर सोता है उसका सहसा ही विनाश हो जाता है, पूरा राष्ट्र पलट जाता है। रफीउद्दीन
V.D. Savarkar (काला पानी)
किसी मुसलमान को लूटना हो तो वह उसे सिर्फ ‘काफिर का दोस्त’ जैसी गाली देता और फिर अपनी कसम से मुक्त होता।
V.D. Savarkar (काला पानी)
हिंस्र जानवरों की तरह हिंस्र पशुतुल्य मनुष्य भी यदि किसी दंड से सचमुच डरते हैं तो शारीरिक दंड से, न कि मानसिक। मन अर्थात् मान के संदर्भ में डर उन्हें लगभग नहीं के बराबर होता है। हिंस्र जानवर हिलता है कोड़ों की फटकार से। हिंस्र श्वापद मनुष्य भी कोड़ों से ही हिलता
V.D. Savarkar (काला पानी)
यह भी सौ फीसदी सच है कि यमलोक सिधारना हो तो मखमली कालीन बिछे पलक-पाँवड़ों से ठुमक-ठुमककर नहीं जा सकते, नागफनी एवं सेमल के कँटीले जंगल में से ही राह निकालते जाना पड़ता है। भई, मरघट में डेरा डालना हो तो वहाँ जलती चिताएँ, हड्डियों के टुकड़े, पैरों को जलाती गरम राख, तड़ातड़ फूटती कपालों के स्वर और भूतों की चीखें ही संगी-साथी होती हैं। घोर भयानक निराशा है यह। भई, यदि मन में यही जिज्ञासा ठाठें मार रही है कि मानवी मन का काला पानी क्या चीज है तो उस काले पानी का वही यथार्थ रूप दिखाना चाहिए जैसे होता है। उसके ऊपर यों ही शिष्टाचारस्वरूप गुलाब जल छिड़का तो वह घोर वंचना होगी। गुलाब जल उस काले जल की विडंबना है, न कि शोभा।
V.D. Savarkar (काला पानी)
उसके हाथ ऊपर उठाकर उन्हीं दो लकडि़यों के ऊपर के छोरों पर लोहे की दो दूसरी कडि़यों में बाँधे गए। गरदन एक पट्टे में फँसाई गई। एक थाली में जंतुघ्न दवा तथा कोड़े मारना समाप्त होते ही घावों पर लगाई जानेवाली मरहम-पट्टियाँ लेकर औषधालय का मिश्रक (कंपाउंडर) तथा उसके पीछे-पीछे डॉक्टर भी वहाँ आ धमके। सिपाही पंक्ति में खड़े हो गए। बदन पर मात्र लँगोटी छोड़कर रफीउद्दीन को सिर से पाँव तक नंगा किया गया। उसने मुँह से चूँ तक नहीं किया। उसकी वह उद्दंड-उजड्ड आदत जो हमेशा फन उभारकर फुफकारती थी, न जाने कहाँ गायब हो गई। यद्यपि वह चेतनाशून्य अवस्था में अपनी दुर्दशा निहार रहा था, तो भी कट्टर दुश्मन बने उस जमादार से, जो सारी व्यवस्था खड़ा रहकर करवा रहा था, उसने एक शब्द भी नहीं कहा। वह बोल ही नहीं सका। ढन
V.D. Savarkar (काला पानी)
न्याय-अन्याय का जय-पराजय से सुतराँ संबंध नहीं होता। इस तथ्य को हम जितनी जल्दी सीख लें उतना ही अच्छा है। न्याय-अन्याय का मामला अलग है और जय-पराजय का अलग। जय-पराजय का यदि किसी से वास्ता है तो वह पराक्रम से है, न कि न्याय से। याद रखो। रट लो यह शब्द—पराक्रम। जयमंत्र। यह शब्द सीखो।
V.D. Savarkar (काला पानी)
पिंडारियों के अमर, खान प्रभृत्ति ने ही—जो स्पष्ट रूप में डाकू-लुटेरे थे—क्या टोंक जैसी रियासतों की स्थापना नहीं की?
V.D. Savarkar (काला पानी)
बंदीगृह की मौन, कठोर पत्थर की दीवारें इन्हीं कुछ लोगों को किसी भी नीतिग्रंथ से अधिक संयम सिखाती हैं।
V.D. Savarkar (काला पानी)
अतः यह धारणा मन में लाना ही मूलतः अंधाधुंध वितंडा है कि एक बार दंडित होने का ठप्पा लग जाए तो वह हमेशा के लिए मानव समाज से हटकर बदमाश, जल्लाद, अशिष्ट बन गया। इतना ही नहीं अपितु उसकी संतान भी वंश-परंपरा से पापप्रवण ही होगी।
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काफी मात्रा में अस्पृश्यता की बेड़ी टूटी है। रोटीबंदी की कम-से-कम स्पृश्य वर्ग में तो स्मृति ही मिट गई। बंगाली, पंजाबी, मद्रासी, मराठी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र कौन है, कौन नहीं ऐसे विचार भी मिट गए और कम-से-कम स्पृश्य हिंदू इकट्ठे बैठकर भोजन करते हैं और अस्पृश्य भी। मिश्र विवाह आम बात होने के कारण बेटीबंदी टूट गई और जात-पाँत का नामोनिशान तक मिट गया है।
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तोड़कर सम्मिश्र विवाह करने से संतान निकृष्ट होगी। भाषा की दृष्टि से भी अंदमान ने एक और अभिनंदनीय सफल प्रयोग करके दिखाया है। यहाँ के सभी हिंदू जनपद की भाषा एक ही है—हिंदी। युवा पीढ़ी की मातृभाषा ही हिंदी है।
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तनिक वर्तमान की ओर तो एक नजर डालिए, यहाँ एक नया प्रदेश ही नहीं अपितु अपनी हिंदू संस्कृति का एक नया जनपद भी समृद्ध हो रहा है।
V.D. Savarkar (काला पानी)
समुद्र का विविध रंगी गुलाब पुष्पों का हार कैसा होता है—यह नन्ही सी खिली-खिली सी उत्फुल्ल ऊर्मि ज्यों-की-त्यों उठाकर ले जाएँ। अंदमान का एक अनूठा विहंगम दृश्य।
V.D. Savarkar (काला पानी)
सूत्र पढ़ाया था! ‘काले पानी से जिन्हें सफलतापूर्वक भागना है वे अपना पूर्व चरित्र यों ही दूसरों को बताना और जान की परवाह करना इन दो बातों का त्याग करें।
V.D. Savarkar (काला पानी)
आवश्यकता से अधिक आडंबर या प्रपंच हो तो उसका होना न होना बराबर है। सुख मात्र आडंबर या दिखावे में नहीं होता। सुख मन की तुष्टि में होता है। वह कहा करतीं—चाहे पचासों हवेलियाँ हों, तथापि आखिर उतने ही आकारमान के स्थान पर चिरनिद्रा लेनी होगी जितनी इस देह की लंबाई और चौड़ाई है। अस्थियाँ विपुल होने भर से देहवृद्धि नहीं की जा सकती। उसी तरह चाहे रसभीनी जलेबियों के ढेर-के-ढेर क्यों न लगे हों, भई उतना ही खाया जा सकता है जितना इस बलिश्त भर पेट के गड्ढे में समा सकता है। इसीलिए तो कहती हूँ, अब स्वदेश जाकर कौन सा अनूठा सुख मिलनेवाला है भला,
V.D. Savarkar (काला पानी)
सूर्य कुलोत्पन्न एक राजकुमार और उसकी बहन को संकटवशात् एक निर्जन जंगल में जीवनयापन करना पड़ा। अतः भाई-बहनों ने आपस में विवाह किया और उन्हीं की संतानों की कोख से भविष्य में, कुछ पीढि़यों के पश्चात् बुद्ध समान महात्मा का जन्म हुआ।
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तुम मर्दों को रूप-रंग का अहसास अधिक होता है, क्योंकि तुम्हारा प्रेम तुम्हारे नेत्रों में बसता है। लेकिन हम ललनाओं की प्रीत हमारे हृदय के नेत्रों से देखती है, इसलिए रूप-रंग पर वह नहीं जाती। पराक्रम और पौरुष की सुंदरता रंग-रूप से कितनी अधिक निखरी-निखरी, लुभावनी एवं आकर्षक होती है। यदि विश्वास नहीं होता हो तो स्वर्णगौरी सीता से पूछो जिसने मेघ के समान श्यामवर्णवाले प्रभु रामचंद्र का वरण किया, स्वरूपशालिनी रुक्मिणी से पूछो जिसने घननील साँवले-सलोने का वरण करते हुए शिशुपाल आदि गोरे-गोरे अभागे लंपटों को दुत्कारा। इसलिए तो ललनाओं का प्रेम रूप-रंग की चार दिन की चाँदनी पर लुब्ध नहीं होता। वह तो रूप-रंग के दो दिनों में ही सूखती घास की बजाय शील के आम्रतरु सदृश सरस, सुस्थिर एवं सफल होता है। रूप-रंग तो बस ओस के मोती हैं।
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प्रातःकाल में ही मृगया खेलते सागर तट पर अथवा जंगल में स्वच्छंदतापूर्वक संचार करें, थककर चूर हो जाएँ तो छाती पर सिर रखकर इस तरह विश्राम करें, परस्पर सहलाने का आनंद उठाएँ, फिर भूख लगने पर गुफा की ओर जाएँ और स्वादिष्ट मांस, मछली, फल, कंदों का यथारुचि आस्वाद लें; दोपहर में सिंधु-पुलिन पर जावरों की नारियों के खेल खेलते-खेलते, गाते-नाचते नानाविध रंग-रूप के शंख-सीपियाँ, पत्थर चुनते वनश्री एवं जलश्री का चमत्कार देखें और दिन भर इतस्ततः स्वच्छंद उड़ान भरते-भरते थके-माँदे पंछियों के जोड़े जब अपने-अपने नीड़ की ओर जाने लगें तो उन्हीं की तरह तुम्हारे हाथों में हाथ डालकर अपनी गुफा के गोकुल में वापस लौटें और तुम्हारी इन मजबूत बाँहों में सो जाएँ। प्रिय साथी का सुख तो मन द्वारा ही नापा जाता है। इस गुफा में अपनी रतिसेज पर वह जो तुष्टि देता है, वह गोकुल में भी उतना ही रहेगा। फिर अब यहाँ से आगे भागने के प्रयास में जान का खतरा अपने आप पर जबरदस्ती क्यों मोल लेते हो? हम जीवन भर यहीं पर रहेंगे, मेरे सुख-संतोष की शय्या के लिए वह गुफा पर्याप्त है।
V.D. Savarkar (काला पानी)
राजकुल का रक्तबीज दैवी, ईश्वरीय माना जाता है। उसका साधारण मानवों से संबंध न हो, वह अपवित्र न हो इस तरह अतिरेकी आनुवंशिक पवित्रता को अक्षुण्ण रखने के लिए ब्रह्मदेश, मैक्सिको और कुछ अन्य देशों के भी विख्यात ‘दैवी’ राजवंशों के राजकुमारों का ब्याह उनकी सगी कोखजाया बहन के साथ ही होना अनिवार्य माना जाता है। यही उनके लिए धर्माज्ञा थी, शिष्ट-सम्मत रूढि़ थी। जिन समाजों ने देखा, इस धर्मपालन के दुष्परिणाम हो रहे हैं, उन्होंने इसे ही अधर्म घोषित किया। आज वर्तमान युग में भी हिंदू, मुसलिम, ईसाई आदि धर्मों में कहीं ममेरी बहन, कहीं मौसेरी बहन; इतना ही नहीं, प्रत्यक्ष सगी चचेरी बहन से ब्याह रचाना अधर्म नहीं माना जाता, फिर हम लोग तो बस जान का खतरा टालने के लिए ही भाई-बहन के रिश्ते का बहाना बना रहे हैं।
V.D. Savarkar (काला पानी)
अंदमानी जाति में सिर्फ बर्बर, आदिम अविकसित मानव ही हैं। उनकी स्वलिखित कथाएँ तो छोडि़ए, जातीय पूर्ववृत्त की जनश्रुतियाँ भी नहीं हैं। अंदमान एक प्रचंड विशालकाय भू-भाग है जिसका सिर्फ भूगोल है, इतिहास नहीं। उसका समग्र इतिहास एक ही पंक्ति का है—पांड्य राजा की प्रशस्ति।
V.D. Savarkar (काला पानी)
हिंदुत्व’ कोई सामान्य शब्द नहीं है। यह एक परंपरा है। एक इतिहास है। यह इतिहास केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक इतिहास नहीं है। अनेक बार ‘हिंदुत्व’ शब्द को उसी के समान किसी अन्य शब्द के समतुल्य मानकर बड़ी भूल की जाती है। वैसा यह इतिहास नहीं है। वह एक सर्वसंग्रही इतिहास है।
V.D. Savarkar (Hindutva (Hindi Edition))
honour is greater than loss or gain;
V.D. Savarkar (The Indian War of Independence 1857)