Bhishma Pitamah Quotes

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ये भारत में धर्मराज्य की स्थापना चाहते थे। उस समय क्षत्रिय समाज बहुत ही गिरा हुआ था। इसके उद्धार के लिए कृष्ण ने बड़ा प्रयत्न किया। भारतवर्ष को सुधरी हुई दशा में देखने के लिए उन्होंने बड़ा परिश्रम किया। और उनकी उद्देश्य-सिद्धि के लिए एकमात्र पाण्डव ही उनके साधन थे।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
देश-देशान्तरों से पाण्डव इतना धन बटोर लाये थे कि सोने-चाँदी का पहाड़ लग गया। सभा भवन और उद्यान आदि की रचना का भार मय दानव को सौंपा गया। उस समय वह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ कारीगर था। राजसूय से पाण्डव की धाक जम गयी। भारत के सब राजाओं पर उनका आतंक छा गया। दुर्योधन पर तो इतना प्रभाव पड़ा कि यज्ञ की चिन्ता के मारे रात को उसकी आँख भी न लगने लगी। पाण्डवों की दौलत उसके लिए आँखों की किरकिरी हो गयी। उसे हड़प लेने के लिए दिन-रात जी मचलने लगा। परन्तु कोई उपाय न सूझता था। राजसूय यज्ञ में दुर्योधन को भी न्यौता गया था। मय दानव की विचित्र रचना देखकर उसके छक्के छूट गये। एक जगह तो उसकी समझ में न आया कि यह जल है या स्थल। एक जगह स्थल को जल समझकर धोती सिकोड़ने लगा था। यह देखकर भीम कहीं हँस पड़े थे। इससे वह भी जल गया। बदला चुकाने के लिए दिन-रात जी खौलने लगा। पाण्डवों की बढ़ी हुई प्रभुता उसके लिए शूल हो गयी।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
लड़ना-भिड़ना मेरा काम नहीं। इसके लिए तो किसी शूरवीर की शरण लो। मैं तुम्हें एक बात से मदद करूँगा। मैं जुआड़ी पक्का हूँ। मेरे हाथ से बाजी मार ले जाय ऐसा विरला ही मनुष्य संसार में होगा। युधिष्ठिर को भी जुआ खेलने का शौक है। पर वह सीधे तौर पर खेलता है। निरा कुन्द जेहन है। पासा फेंकने का शऊर भी नहीं है। वह अगर मेरे साथ जुआ खेले तो मैं नि:सन्देह उसे खेल में हरा दूँगा। इस तरह उसकी कुल दौलत तुम्हारे हाथ लग जायेगी।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
भीष्म ने कहा, “कर्ण, तुम निरे बच्चे की तरह बातें कर रहे हो। मैं जानता हूँ, लड़ाई से पहले सेना का सम्पूर्ण भार मेरे सिर पर रक्खा जायगा। तुम मुझे नहीं पहचानते। मैं कभी पक्षपात नहीं करता। मेरे सेनापतित्व में जो लड़ाई होगी, उसे याद रखना। मैं किसी का पक्ष हरगिज न लूँगा। लड़ने और धनुर्धारण करने का मौका भी मैं तुम्हें दूँगा। उस समय समर-कोशल का अन्दाजा लगा लेना। मैं युद्ध में अपना पूरा बल न लगाऊँगा। क्योंकि तुम्हारी युद्ध-लालसा अधूरी रह जायगी। लोगों को तुम्हारी वीरता को देखने का मौका न मिलेगा। कर्ण, तुम नही जानते कि महावीर परशुराम के संसार को भस्म कर देनेवाले अस्त्र भी मुझे डरा नहीं सके। इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय-रहित करनेवाले उस महावीर को भी अस्त्र रखना पड़ा था। वे अपने बल और प्रताप का मुझ पर प्रभाव नहीं डाल सके।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
महावीर भीष्म ने जब से कौरवों का पक्ष लिया है, तब से उनकी मति मारी गयी है। वे सत्वहीन हो गये हैं। चेतना अब उनमें बहुत थोड़ी रह गयी है। उन्हें कर्तव्याकर्तव्य का ज्ञान नहीं रहा।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
तुम प्रतिज्ञा कर चुके हो कि इस युद्ध में अस्त्र ग्रहण न करोगे। इसलिए तुम्हारे गौरव की हानि करके मैं अपनी विजय नहीं चाहता।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
धर्मराज, तुम सच कहते हो, हमारे जीवित रहते तुम्हारी विजय कदापि न होगी। अच्छा, हम अपनी मृत्यु का उपाय बतलाते हैं, सुनो,——हम कभी नि:शस्त्र, भागे हुए, ध्वजाहीन, गिरे हुए, डरे हुए, स्त्री-जाति, विकलांग, एक पुत्र के पिता अथवा शरणागत के साथ समर नहीं करते। उस पर भूल- कर भी वाण नहीं छोड़ते। पहले हमने एक और प्रतिज्ञा की थी। वह यह कि अमंगल सूचक ध्वजा देखकर वार न करना। तुम्हारी सेना में शिखण्डी पूर्वजन्म का स्त्री है। वह अम्बा का अवतार है। उस पर मैं वार न करूँगा। उसे अपने सामने बैठाकर दृढ़ वर्म से अपनी रक्षा करके धनंजय मुझ पर वार करें। इस तरह तुम्हारी विजय अवश्य होगी।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
महावीर भीष्म विना धूमवाली आग की तरह जलते हुए दिखायी पड़ रहे थे।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
भीष्म तीर न छोड़ सकते थे। भय था कि कहीं शिखण्डी के कोई वाण न लग जाय। इस समय पाण्डवों के पक्ष के कितने ही वीरों ने विजय की अभिलाषा से भीष्म को एक साथ आकर घेर लिया। महावीर शान्तनुनन्दन उस अवस्था में भी अविचल भाव से बैठे हुए निष्ठुर प्रहार सह रहे थे। भीष्म के इस महान धैर्य से, आकाश मार्ग में विचरण करनेवाले ऋषि-मुनियों को परम सन्तोष हुआ। साधुवाद देते हुए उन्होंने कहा, “भीष्म! तुम्हें सहस्त्रों धन्यवाद हैं। तुम्हें प्राप्त करके भारत की रज-रज पवित्र हो गयी। तुम्हारा धैर्य भगवती धरित्री के धैर्य से बढ़ गया। तुम्हारा धर्म साक्षात् धर्म का भी धर्म है। तुम वीरता को पराकाष्ठा तक पहुँचा चुके हो, अब धैर्य की चरम सीमा भी मनुष्यों को दिखला रहे हो।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
भगवती जाह्नवी ने अपने पुत्र का निधनकाल आया हुआ जानकर कुछ महर्षियों द्वारा उनके निकट अपना सन्देसा कहला भेजा। हंस रूपधारी ऋषि भीष्म को शरों की शय्या पर देखकर उनकी प्रदक्षिणा करते हुए आपस में कहने लगे, “महावीर भीष्म सूर्य के दक्षिणायन रहते हुए क्यों शरीरपात कर रहे हो?” भीष्म को यह चेतावनी देकर वे दक्षिण की ओर उड़ गये। प्रज्ञाचक्षु भीष्म को हंसों के आने का कारण और उनकी आपस की बातचीत मालूम हो गयी। उन्होंने कहा, “हंस रूपधारी महर्षियो, मैं तुम्हारी आज्ञा का पालन करूँगा। जब तक सूर्य दक्षिणायन रहेंगे, तब तक मैं जीवित रहूँगा। पिता के आशीर्वाद से मृत्यु पर मेरा अधिकार है। समय के आने पर ही मैं देह छोडूँगा।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
महाभारत का परिणाम स्त्रियों के लिए बड़ा भयानक हो गया। करोड़ों की तादाद में असूर्यम्पश्या कुल-बालाएँ अकालहत-कलियों की तरह वैधव्य की ज्वाला से झुलसने लगीं। उनके आर्तनाद से भारत का आकाश विदीर्ण होने लगा। इस लड़ाई ने क्षत्रियवीर्य के नाश के साथ स्त्रियों के लिए भी बड़ा भयानक परिणाम लाकर खड़ा कर दिया। अर्जुन ने भगवान् कृष्ण से स्त्रियों के परिणाम पर जो कुछ कहा था, अन्त में वही होकर रहा। पतन को रोकने के लिए जो एक उपाय निकाला गया, उसी के अन्दर से पतनरूपी राक्षस सहस्र-स्कन्ध होकर निकला। रक्त दूषित हो चला, वर्णसंकरों की संख्या-बढ़ने लगी, व्यभिचार और अत्याचार का ताण्डवनृत्य आरम्भ हो गया। अवश्य यह घोर पाप महाभारत के बहुत काल बाद से हुआ, परन्तु इसका जन्म महाभारत के समर से ही हुआ था। देश में राजशक्ति का अभाव हो जाने पर अत्याचारों को जोर पकड़ने का मौका मिला। वे बढ़े और कलिकाल की जयजयकार होने लगी।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
स्वच्छ सलिला भागीरथी के तट पर स्वर्गीय सौन्दर्य पर इतराती हुई, नवयौवना, परम रूपवती एक सुकुमारी षोड्शी को देख चकित हो गये। स्त्री क्या थी चाँदनी की मूर्ति थी। अंग-अंग से लावण्य की सुकुमार धारा बह रही थी। उसकी वे आँखें थीं या सूर्य-बिम्ब पर दो विकसित रश्मियाँ क्रीड़ा कर रही थीं। मुख-मण्डल शान्त सरोवर की तरह उदार हो रहा था, कपोल युगल शीशे की तरह साफ नजर आते थे और उनके उस सुन्दर मुख पर निष्पाप आभा की झलक, झलक रही थी। आभूषणों के बिना भी सुन्दर रूप में तीनों लोक की दृष्टि आकर्षित करने की शक्ति थी। कलिकाओं से व्याकुल लहलही लता-सी उसकी देह मानो यौवन के अपार भार से दब रही थी। चम्पा के दलों-सी कनक-कान्ति छीननेवाली उसकी आँगुलियाँ, लचीली डालियों-सी बाँहें, पीनोन्मत्त उरोज, उस नितम्बिनी की शोभा और भी बढ़ा रहे थे। सबसे अधिक मोहक उसके खुले वायु में तरंगें भरते हुए आजानुलम्बित काले-काले घुँघराले बाल थे। श्वेताम्बरा-षोडशी की मनोमोहिनी मूर्ति पर महाराज शान्तनु मुग्ध हो गये।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
शान्तनु गंगा को देखकर जितने मुग्ध हो गये थे, उतना मोह गंगा को नहीं हुआ, यद्यपि गंगा की अन्तरात्मा भी शान्तनु से मिलने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो रही थी। यह शक्ति गंगा में देवत्व की थी और शान्तनु की वह दुर्बलता, जिसके कारण एकाएक सर्वस्व तक का समर्पण करके वे महाराज से एक मनुष्य की श्रेणी में अपने को समझने लगे थे, मानवीय थी। इसीलिए इस प्रेम के परिणाम में विजय गंगा की ही रही, क्योंकि शान्तनु को गंगा की शर्त मानकर चलना पड़ा। वह शर्त थी—— वसुओं के शाप को स्मरण करके गंगा ने कहा, “महाराज, आपकी इच्छा के अनुसार मैं आपकी सहधर्मिणी होना स्वीकार करती हूँ। मुझे विश्वास है, मेरे साथ रहकर आपको आमोद-प्रमोद में हर तरह की सुविधा होगी। आपके मनोरंजन के लिए मैं सदा ही उत्सुक रहा करूँगी। परन्तु मेरी एक बात अभी से सुन लीजिए। मेरी स्वतन्त्रता पर आपको किसी तरह की रुकावट डालने का अधिकार न रहेगा, न आप मुझे किसी अप्रिय सम्बो- धन से बुला सकेंगे। आप अभी से सोचकर निश्चय कर लीजिए। अगर इस शर्त पर आप दृढ़ रहेंगे, तो मेरा और आपका सम्बन्ध अमिट है, और अगर आपसे इस शर्त का पालन न हो सका, जिस दिन आपकी ओर से उदासीनता या किसी तरह की उपेक्षा का भाव पैदा होगा, उसी दिन मैं आपको छोड़कर अपने अभीप्सित स्थान को चली जाऊँगी।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
राज्य का लोभ वे छोड़ दें। राज्य मेरे पिता का है। पहले जो आधा राज्य हमने बाँट दिया था, हमारी अज्ञता के कारण वैसा हो गया था। हम बालक थे। हमें बुद्धि नहीं थी। अब हम अपने पिता के राज्य का एक टुकड़ा भी न देंगे।” यह कहकर क्रोध के मारे दुर्योधन सभा से उठकर चला आया। श्रीकृष्ण का अपमान भीष्म से सहा न गया।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
पाण्डवों की सेना को छत्र भंग और अर्जुन को युद्ध से परांगमुख देखकर श्रीकृष्ण से न रहा गया। उन्होंने घोड़ों की जोत छोड़ दी। और रथ से उतरकर एक पहिया उठा लिया और भीष्म को मारने के लिए बढ़ गये। क्रोध से आँखें लाल हो रही थीं, मुख से संहार की अखण्ड ज्योति निकल रही थी। योगेश्वर भगवान वासुदेव के क्रोधकम्पित पदक्षेपों से पृथ्वी काँप उठी। कौरवों की सेना में खलबली मच गयी। सब त्रस्त भाव से वह कराल मूर्ति निरीक्षण करने लगे। भीष्म की ओर उन्हें बढ़ते देखकर सब लोगों के मुख से एकाएक यही निकला कि भीष्म हत हो गये—अब किसी तरह भी नहीं बच सकते। वासुदेव को युद्ध के लिए आये हुए देखकर महावीर भीष्म भक्ति से विह्वल हो गये। आँखों से आनन्द की धारा झरने लगी। हाथ जोड़कर कहने लगे, “आओ प्रभु, मेरा संहार करो। मुझे आज तुमने प्रभूत सम्मान का अधिकारी कर दिया है। मुझ पर प्रहार करो। मैं तुम्हारा दास प्रस्तुत हूँ।” श्रीकृष्ण के पीछे अर्जुन भी आ रहे थे। श्रीकृष्ण को इस तरह भीष्म के संहार के लिए बढ़ते हुए देखकर उन्हें बड़ी लज्जा आयी। उन्होंने श्रीकृष्ण को पकड़ लिया। परन्तु उस पकड़ी हुई हालत में भी अर्जुन को लेकर श्रीकृष्ण दस कदम बढ़ गये। तब हाथ जोड़कर अर्जुन पैरों पर गिर पड़े। कहा, “श्रीकृष्ण, मेरी लज्जा रखो। तुमने कहा था, मैं युद्ध में अस्त्र धारण न करूँगा। तुम्हारी बात मिथ्या होगी। लौट चलो।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
महावीर भीष्म ने सबको बैठने के लिए उचित आसन दिया। फिर स्नेहपूर्वक कहा, “केशव, कहो पाण्डवों की प्रीति के लिए हमें क्या करना चाहिए। इनके लिए कठिन-से-कठिन और दुष्कर-से-दुष्कर कार्य भी हम करने के लिए तैयार हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
हे कौरव कुल तिलक, जो सदा ही आपकी दृष्टि का अतिथि था, आप सदा ही जिस पर द्वेष प्रकट करते थे, मैं वही राधेय हूँ!” भीष्म ने आँखें खोलकर देखा, उस समय वहाँ कोई न था। कर्ण को पड़े हुए गले से लक्ष्य कर कहने लगे, “कर्ण, तुम्हारे सम्बन्ध में मुझे नारद से बहुत-सी बातें मालूम हो चुकी हैं। तुम जो मेरे साथ स्पर्धा का भाव रखते थे, इसके लिए मुझे बिल्कुल दु:ख नहीं है। यह तो तुम्हारे स्वभाव के अनुकूल ही था। सुनो, तुम कुन्ती के पुत्र हो, राधा के पुत्र नहीं। तुम्हारा पिता अधिरथ नहीं है। इस पर विश्वास करो और आज तक तुम्हारे प्रति मेरी कटूक्तियों का प्रयोग तुम पर मेरी घृणा के कारण न होता था। उसका एक दूसरा ही कारण है। कर्ण, तुम व्यर्थ ही पाण्डवों की निन्दा किया करते थे, इसलिए तुम्हारे गर्व को खर्व करने के उद्देश्य से मैं तुम्हें अरुचिकर बातें कहा करता था। मैं तुम्हारी वीरता-धीरता खूब समझता हूँ। तुम अर्जुन और वासुदेव के समान वीर हो। काशीपुर में तुमने अकेले जिस तरह कितने ही नरेशों को परास्त किया था और महाराज दुर्योधन के लिए कन्या जीत लाये थे, तुम्हारी वह वीरता सर्वथा सराहनीय है। यह सबकुछ होते हुए भी तुममें कई दोष भी हैं। वत्स, नीच संग में रहने और कुमारी कुन्ती से पैदा होने के कारण तुम्हारा क्षत्रिय भाव बहुत कुछ दब गया। शूद्रत्व के लक्षण तुम्हारे अन्दर प्रवेश कर गये हैं। अन्यथा तुम सब प्रकार से यशस्वी हो। तुम्हारे लिए मेरी अन्तिम यही सलाह है कि अपने भाइयों से मिलो और इस वैर-विरोध को भूल जाओ।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
भीष्म ने मुस्कराते हुए कहा, “कर्ण, अगर वैर न छोड़ सको तो स्वर्ग की आशा से युद्ध करो। दीनता और क्रोध को छोड़कर उत्साह के साथ दुर्योधन की मदद करो।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
शिक्षा सुपात्र पर ही प्रभाव डालती है, तब गुरु की प्रतिभा स्वभावत: उस ओर ज्यादा झुकती है, यही कारण है कि द्रोण को अर्जुन ने मुग्ध कर लिया था।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
अर्जुन ने लज्जित होकर कहा, “श्रीकृष्ण, यह क्या है? यह तो हमसे हरगिज न होगा। पितामह हमें कितना प्यार करते थे। पितामह की गोद में बैठकर हमारा हर अभाव दूर हो जाता था। कितने स्नेह से उन्होंने हमें पाला, पढ़ाया और शिक्षा के बाद मनुष्य और समझदार बनाया। जब हम पितामह की गोद में बैठ पितामह को सम्बोधन करते थे तब वे कितने स्नेह से कहते थे, बेटा, हम तुम्हारे पिता नहीं, तुम्हारे पिता के पिता हैं। हे केशव, हम कैसे उन पिता के पिता पर निर्दय होकर प्रहार करेंगे!
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
मुझे मालूम है कि मैं किसका पुत्र हूँ। परन्तु जिस माता ने मेरा त्याग कर दिया अपनी मर्यादा बचाने के लिए, सो अब भी वह मेरी माता के सम्मान पर प्रतिष्ठित है? जिस महाराज दुर्योधन ने मुझे अपमानित होते हुए देखकर मेरी बाँह गह, मुझे बराबर अपने आसन पर बैठाया, जिसका अन्न खाकर मैं शक्ति-सामर्थ्यवाला बना, क्या मैं उस उपकार का त्याग कर दूँ? नहीं, यह तो मैं कदापि न कर सकूँगा। जिस तरह वासुदेव ने पाण्डवों की भलाई के लिए अपना धन, जन, जीवन, सर्वस्व त्याग कर दिया है, उसी तरह मैं भी दुर्योधन के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर चुका हूँ।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
ब्रह्मन्, सुनिए, अधर्माचरण यहाँ पाण्डव खुद कर रहे हैं। महाराज दुर्योधन ने अधर्म को आश्रय नहीं दिया। युधिष्ठिर के बिना इच्छा के कभी द्युतक्रीड़ा नहीं हुई। जुए की शर्त के अनुसार युधिष्ठिर अपना राज्य हार चुके हैं। क्या पाशे में धर्म नहीं था? जबरन उनसे राज्य छीन लिया गया है? वे वनवास के लिए गये तो क्या किसी ने उन्हें दिया था? आखिर शर्त पर ही तो हारे थे? उसी तरह राज्य शर्त पर हारे। अब क्यों उसके लिए हाथ फैलाते हैं? क्या यह धर्म है? धर्म की डींग हाँककर यह सरासर अन्याय किया जा रहा है और महाराज दुर्योधन पर अपने बल का सिक्का जमाया जा रहा है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस, इसे ही कहते हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
कर्ण, वीरों को चाहिए कि दूसरे वीर की कद्र करे।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
अर्जुन के साथ भगवान् वासुदेव हैं। तुम्हें जो शक्ति मिली है, तुम वासुदेव के चक्कर में पड़ोगे तो वह निस्सार हो जायेगी। वह तुम्हें कोई काम न दे सकेगी। अर्जुन के दिव्य वाणों की तुम्हें खबर नहीं है। अपने वाणों से और वासुदेव की सहायता से अर्जुन संसार-भर के वाणों का सामना कर सकता है।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
युधिष्ठिर सीधे पितामह भीष्म के रथ की ओर बढ़ते गये। उनके साथ उनके भाई भी हो गये थे। भीष्म के सामने सबने भूमिष्ठ होकर प्रणाम किया और आशीर्वाद देने की प्रार्थना की। भीष्म ने कहा, “युधिष्ठिर, तुम धर्मात्मा पुरुष हो। तुम्हारी विजय होगी। अगर तुम मेरे पास न आते तो हम तुम्हें आसीस देने के बदले शाप देते। परन्तु तुमने यथार्थ ही धर्माचरण किया है। इसलिए तुम्हें दबाने की शक्ति पराजित होगी। तुम्हारी दूसरी अभिलाषाएँ भी सफल होंगी।। युधिष्ठिर, पुरुष अर्थ का दास है, परन्तु अर्थ किसी का दास नहीं। मैं कौरवों के अर्थ का ऋणी हूँ।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
वीरत्व के सभी साधन एकत्र हो गये हैं। गाण्डीव, अश्व, कवच, अक्षय तूणीर, देवताओं के दिव्य अस्त्र, भगवान् भूतनाथ का पाशुपत, वासुदेव और ध्वजा पर साक्षात् महावीर पवन-नन्दन।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
कृष्ण से पाण्डवों की गहरी दोस्ती थी। वे अक्सर पाण्डवों से मिलने आया करते थे। एक तो मजबूत रिश्ता था——कृष्ण पाण्डवों के ममेरे भाई थे, दूसरे इधर, अर्जुन के साथ श्रीकृष्ण की बहिन सुभद्रा का विवाह भी हो गया। इससे रिश्ता और भी गाढ़ा हो गया। इसके अलावा श्रीकृष्ण धर्मराज्य की स्थापना चाहते थे। वे अपने समय के भारतवर्ष में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य थे।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))
द्रौपदी युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव के पास गयी। ये उस समय अपना नाम बदलकर विराट के यहाँ नौकरी करते थे। इनमें से किसी ने द्रौपदी की पुकार पर ध्यान न दिया। सबको डर था कि कहीं दुर्योधन को पता लग गया तो 13 वर्ष और मुसीबत झेलनी पड़ेगी। सबने द्रौपदी को समझाया। पर कोई उपाय न था। कीचक रोज उसे सताता था। अन्त में वह भीम के पास गयी। भीम उसकी रक्षा करने के लिए तैयार हो गये। बड़े भाई की आज्ञा की भी उन्होंने अपनी इज्जत के सामने बिलकुल परवाह न की।
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (Bhishma Pitamah (Hindi Edition))