“
Good health and Good Sense ...These are two of life's greatest blessings which shall be with you always.....Sivkishen Ji
”
”
Sivkishen Ji (The King Yayati: The Quests for Immorality and Immortality (Vedic Wisdom))
“
Yayati exploits the rule for his own benefit whereas Dashratha enforces the rule so that royal integrity is never questioned. The rule (obey the father) evokes dharma in Dashratha’s case, but not so in Yayati’s.
”
”
Devdutt Pattanaik (Krishna's Secret)
“
Gods are addicted to the pleasures and the demons are blindly worshipping power.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
विविधता ही इस जीवन की देह है। परस्पर विरोधी बातें ही उसकी आत्मा हैं। जीवन का रस उसका आनंद उसका सम्मोहन उसकी आत्मा...इसी विविधता में है, विरोध में है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
ऐश्वर्य जितना बड़ा हो उतने ही शिष्टाचार के बंधन अधिक कठोर होते हैं!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
never forget that it is easier to conquer the world than to master the mind ...
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
The world errs, even realises the errors, but seldom learns from them.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
निरंकुश वासना की क्षणिक पूर्ति प्रेम तो नहीं
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
शब्द की अपेक्षा स्पर्श कभी-कभी बहुत कुछ कह जाता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
प्रेम मनुष्य को अपने से परे देखने की शक्ति देता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
In happiness and misery, remember one thing. Sex and wealth are the great symbols of manhood. They are inspiring symbols. They sustain life. But they are unbridled. There is no knowing when they will run amuck. Their reins must at all times be in the hands of duty.’ Oh man, desire is never satisfied by indulgence. Like the sacrificial fire, it ever grows with every offering.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
कहाँ थी मैं? इन्द्रलोक के नंदनवन में? मंदाकिनी में बहती आई हरसिंगार की सेज पर? मलयगिरि से चलने वाली शीतल सुगंधित पवन के झकोरों पर? या विश्व के अज्ञात सौंदर्य की खोज में निकले किसी महाकवि की नौका में?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
जग माणसाच्या मनातल्या दयेवर चालत नाही. ते त्याच्या मनगटातल्या बळावर चालतं. माणूस केवळ प्रेमावर जगू शकत नाही. तो इतरांचा पराभव करून जगतो. मनुष्य या जगात जी धडपड करतो, ती भोगासाठी! त्यागाची पुराणं देवळात ठीक असतात; पण जीवन हे देवालय नाही! ते रणांगण आहे.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (YAYATI (Marathi))
“
A creeper has many flowers; some are offered to God in worship and so arouse devotion. Some adorn the lovely ringlets of maidens and are silent witnesses to the hours of love and pleasures indulged in. The same is true of humans born in this world. Some live to be old and some rise to honour and fame and some are crushed by poverty. But in the end, all these flowers fall to the ground and are lost in the earth.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
Human beings divide the world into mine and yours. We create borders. Include what we like and exclude what we do not like. Thus a rift occurs in relationships. Gandhari is jealous of Kunti, Kunti of Madri, Arjuna of Karna, Duryodhana of Bhima. That is why Yayati favors Puru over Yadu. That is why Satyabhama quarrels with Rukmini. But for Shyam, there are no boundaries. No mine and yours. This no hero or villain. No predator or prey. No them or us. He sides with both killer and killed. For him, in wisdom, everyone is family. Vasudhaiva Kutumbakam.
”
”
Devdutt Pattanaik (Shyam: An Illustrated Retelling of the Bhagavata)
“
We are all a little wiser towards the end of our lives and the wisdom often comes from the pain suffered by oneself.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
सभी कवि यही कहते हैं कि कलह के बिना प्रेम में मिठास नहीं आती!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
जीवन और मृत्यु! कितना क्रूर खेल है यह! क्या केवल यह खेल खेलने के लिए ही मनुष्य इस संसार में आता है?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति
हविषा कृष्णवर्त्मेंव भूय एवाभिवर्धते।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
वह हँसी मात्र एक प्रेयसी की हँसी नहीं थी। वह एक मानिनी की भी हँसी थी। अपने सौन्दर्य के बल पर पुरुष को भी चरणों में झुका सकने के अहंकार में मदहोश रमणी की हँसी थी वह
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
देव विलासिता के अन्धे उपासक हैं। दैत्य शक्ति की अंधी उपासना करते हैं। ये दोनों उपासक जगत् को सुखी बनाने में असमर्थ हैं।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
दुनिया में केवल तीन ही बातें सत्य हैं–मृगया, मदिरा, मदिराक्षी। इन तीनों के सहवास में आदमी अपने सारे दुःख भूल जाता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
आदमी ज़िन्दगी के अन्तिम मोड़ पर कुछ सयाना अवश्य हो जाया करता है, लेकिन यह समझदारी दूसरों की ठोकरों से नहीं, बल्कि उसके अपने ज़ख्मों से आया करती है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
जीवन के प्रारंभ में अर्थहीन लगने वाली बातें ही जीवन के अन्तिम चरणों में बहुत ही गहरा अर्थ रखने वाली प्रतीत होने लगती हैं।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
पुरुष पराक्रम के लिए ही पैदा होते हैं।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
एक बात कभी न भुलाना–शरीर-सुख मानव जीवन का मुख्य निकष नहीं है। आत्मा का सन्तोष ही वह निकष है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
कलाकार के दुःख से ही उसकी कला अधिक सजीव, अधिक सुंदर और अधिक रसीली बन जाती है? क्या प्रकृति का यही अलिखित नियम है कि कलाकार दुखी रहे?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
संस्कृति ने मनुष्य को हमेशा बाह्यतः बदला है। उसका अन्तरंग आज भी वैसी ही अंधी जीवन-प्रेरणओं के पीछे भागते रहने वाले पशु के समान है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
कुछ लोग ऐसे होते है कि उन्हें हमेशा प्रेम की आर्द्रता की आवश्यकता हुआ करती है। वह आर्द्रता न मिली तो वे सूख जाते हैं।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
भाग्य की गति अत्यंत विचित्र और निर्मम होती है, देवयानी! देखते ही देखते आकाश की उल्का को वह धरती का पाषाण बना के छोड़ता है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
युवती के लिए अपने पति की केवल पत्नी बनना काफी नहीं है। उसे तो उसकी सखी, उसकी बहन, उसकी कन्या–यही क्यों, मौका आने पर उसकी माँ भी बनना पड़ता है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
कहीें दुनिया की ये दार्शनिक बातें केवल दूसरों से कहने के लिए तो नहीं होतीं? लेकिन मुझ जैसे बूढ़े की बात को याद रखना–इस द्वंद्वपूर्ण जीवन में दार्शनिक सिद्धांत ही मानव का अन्तिम सहारा है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
Good and evil are imaginary concepts put out by clever men and fools. In this world, only happiness and misery are real. Everything else is delusion. Good and bad are appearances ... the play of the mind.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
सच तो यही है कि इस संसार में हर कोई केवल अपने लिए ही जिया करता है। मनुष्य सुख के लिए अपने निकट के लोगों का सहारा ठीक उसी तरह खोजते हैं जैसे वृक्षलताओं की जड़ें पास की आर्द्रता की ओर मुड़ जाती हैं। इसी झुकाव को दुनिया कभी प्रेम कहती है कभी प्रीति, तो कभी मैत्री। लेकिन वास्तव में वह होता है आत्मप्रेम ही। एक तरफ की आर्द्रता नष्ट होते ही पेड़-पौधे सूख नहीं जाते हैं उनकी जड़ें किसी और आर्द्रता की खोज में दूसरी ओर मुड़ जाती हैं–वह आर्द्रता नज़दीक हो या दूर–और उसे खोजकर वे फिर से लहलहाने लगते है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
बच्चे बड़े होने लगे तो माँ-बाप से दूर जाने लगते हैं। प्रीति और पराक्रम दोनों युवा मन की प्रबल प्रेरणाएं हुआ करती हैं। किशोर-किशोरियों को अपने बचपन की सुरक्षित दुनिया से भुलावा देकर वे काफी दूर ले जाया करती हैं। किन्तु माँ-बाप उनकी चिन्ता करते हुए उसी पुरानी दुनिया में चक्कर काटा करते
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
Mother was still brooding over the loss of her offspring many years ago but the same mother could cheerfully look upon the death of a mother bird. She had admiration for her son who had killed that innocent bird. She could partake of the dead mother’s meat with relish. I was baffled by this contradiction in life.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
In this world everybody obviously lives for himself. As the roots of the trees and creepers turn to moisture nearby, so do men and women look for support to near relations for their happiness. This is what the world calls love, affection or friendship. In fact, it is only the love of self. If the moisture on one side dries up, the trees and the creepers do not dry up, but their roots look for it elsewhere, be it far or near. They find it, draw it in and so remain
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
प्रेम मनुष्य को अपने से परे देखने की शक्ति देता है। प्रेम किसी से भी हो गया हो, मनुष्य से अथवा वस्तु से; किन्तु वह प्रेम सच्चा होना चाहिए। अन्तःकरण की तह से उठता हुआ आना चाहिए! वह स्वार्थी, लोभी या धोखेबाज़ नहीं होना चाहिए। राजकन्ये, सच्चा प्रेम हमेशा निःस्वार्थी होता है, निरपेक्ष होता है। फिर वह फूल से किया गया हो या किसी जीव से। प्रकृति की सुन्दरता से हो या माता-पिता से। प्रीतम या प्रेयसी से किया हो अथवा वंश, जाति या राष्ट से! निःस्वार्थ, निरपेक्ष, निरहंकार प्रेम ही मनुष्य की आत्मा के विकास की पहली सीढ़ी होती है। इस तरह का प्रेम केवल मनुष्य ही कर सकता है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
इसी वनवास में मैं यह भी जान पाई कि ॠषि-मुनि वन में जाकर तपस्या क्यों किया करते है। निसर्ग और मानव का नाता अनादि अनंत है। ये दोनाें मानो जुड़वाँ भाई हैं। इसीलिए निसर्ग के सान्निध्य में जीवन अपनी सारी सच्चाइयाँ लेकर हमारे सामने प्रकट हो जाता है। मानव यह समझने लगता है कि जीवन की असली शक्ति क्या है और उसकी सही-सही मर्यादाएं क्या हैं। मानव निसर्ग से दूर हो जाता है तो उसका जीवन एकांगी होने लगता है। उस कृत्रिम और एकांगी जीवन में उसकी कल्पनाएं, भावनाएं, वासनाएं सब अवास्तविक और विकृत बन जाती हैं। वो तो मेरा सौभाग्य था जो अभागिन होते हुए भी मैं यहाँ आई और जीवन की जड़ में जो सत्य हुआ करता है उसका दर्शन कर सकी।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
स्त्री के शरीर और पुरुष के शरीर में स्त्री और पुरुष के मन में, स्त्री और पुरुष के जीवन में, कितना अन्तर होता है! पुरुष अमूर्त के पीछे सहज दौड़ता है। इसीलिए उसे कीर्ति, आत्मा, पराक्रम, परमेश्वर आदि बातों में तुरन्त आकर्षण लगने लगता है! किन्तु स्त्री इन बातों पर आसानी से मोहित नहीं होती। उसे प्रीति, पति, संतान, सेवा, घर, गृहस्थी आदि मूर्त बातों का अधिक आकर्षण होता है। वह संयम बरतती है त्याग भी करती है किन्तु वह सब मूर्त बातों के लिए! उसे अमूर्त के प्रति उतना लगाव नहीं होता जितना पुरुष को। अपना सर्वस्व देकर पूजने के लिए अपने आँसुओं का अभिषेक करने के लिए स्त्री को एक मूर्ति की आवश्यकता हुआ करती है। पुरुष स्वभावतः आकाश का पुजारी है! स्त्री को धरती की पूजा अधिक प्यारी है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
In happiness and misery, remember one thing. Sex and wealth are the great symbols of manhood. They are inspiring symbols. They sustain life. But they are unbridled. There is no knowing when they will run amuck. Their reins must at all times be in the hands of duty.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
समुद्र में तैरने का आनंद जी भर कर लेना हो तो किनारा छोड़कर गहरे पानी में काफी दूर भीतर जाना पड़ता है। कभी बारी-बारी से लहरों का आलिंगन मिलता है तो कभी उनके थपेड़े भी खाने पड़ते हैं! पल-पल प्रतिक्षण नमकीन चुंबनाें की मिठास चखनी पड़ती है, नीले पानी पर तैरते रहकर दूर दिखाई देने वाले नीले क्षितिज को अपनी बाँहों में भरने की चेष्टा करनी पड़ती है, मौत के मुँह में हँसते-हँसते सागर के अमर गीता का साथ देना पड़ता है! प्रीत की रीत भी ऐसी ही है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
मानव जीवन में आत्मा रथी, शरीर रथ, बुद्धि सारथी और मन लगाम है। विविध इंद्रियाँ घोड़े हैं। उपभोग के सभी विषय उसके रास्ते हैं और इंद्रियाँ और मन से युक्त आत्मा उसका भोक्ता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
दासी के हाथ होते हैं, पाँव होते हैं किन्तु मुँह नहीं होता! और मन? वह तो होता ही नहीं!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
There are only two witnesses in this world to good and bad, to truth and falsehood and to right and wrong, Kacha used to say. One is conscience and the other is omniscient God.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
In human life, the soul is the passenger, the body the chariot, conscience the charioteer and mind the reins. The different senses are the horses, all the items of enjoyment are the roads, and the soul with senses and the mind attached to it has to use them. If there is no chariot, where will the soul sit? How will he get to the battlefield of life quickly? How will he fight the enemy? Therefore, one must not underrate the importance of the chariot i.e., the body.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
Yayati, one day you will be king. You will be a sovereign. You will celebrate a hundred sacrifices. But never forget that it is easier to conquer the world than to master the mind ...
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
Oh little leaf, why should you grieve over this sudden death? You have in your own way contributed to the beauty of this tree. You have done your part in giving your little shade to us. Your life is fulfilled and your place in Heaven is secure.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
life is such. It is sweet and beautiful but no one knows how and when it will be infected.’ He paused in deep thought and recited a verse which said, ‘In life, it is the sweet fruit that is most likely to be infested.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
As the beauty of a woman is enhanced with modesty, so are wealth and desire when allied to dharma.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
No matter how sweet or mysterious it was, it was still the tiny world of a bud yet to blossom. That world had not yet awakened to the humming of the bees. The soft caress of the golden warm rays of the sun was foreign to it. The bud had not opened to look on the vast expanse of the sky. It had not yet known even in a dream the entrancing grace of the carved image of the Goddess or the lure of black tresses, the crowning glory of a beautiful maiden. A bud cannot forever remain a bud. Blossom it must into maturity.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
The joy of dying for someone else is a hundred times greater than the joy of living for oneself. What a great and noble truth this is! But, for the first time today, it was revealed to me.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
We are all a little wiser towards the end of our lives and the wisdom often comes from the pain suffered by oneself. A
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
कोणत्याही प्रकारचा उन्माद म्हणजे मृत्यू! नेहमीच्या मृत्यूहून हा मृत्यू फार भयंकर असतो. कारण, त्यात माणसाचा आत्माच मृत होतो. ह
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (YAYATI (Marathi))
“
Oh man, desire is never satisfied by indulgence. Like the sacrificial fire, it ever grows with every offering.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust (Library of South Asian Literature))
“
இரவில் அவன் பழங்களைப் புசிக்கும்போது நான் அவனிடம் பேசிக் கொண்டிருப்பேன். அழகான இனிய பழத்தில் ஒரு நாள் புழு நெளிந்தது. அவனுடைய நகைமுகம் திடீரென்று மாறியது. மான் போல் பரந்தவையும், சிங்கம் போல் அச்சமற்றவையுமான கண்களை என் புறமாகத் திருப்பி, "இளவரசே, வாழ்க்கை இது தான். இது அழகியது, இனியது, ஆனால் இதில் எப்பொழுது எங்கிருந்து புழு வந்து நெளியும் என்பதைச் சொல்ல முடியாது" என்றான்.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
இந்த உலகில் யாருமே தமக்காகத்தான் வாழ்கிறார்கள் என்பதுதான் உண்மை. மரம் செடி கொடிகளின் வேர், பக்கத்திலுள்ள ஈரத்தை நாடிச் செல்வது போல, மாந்தரும் தமது சுகத்துக்காக அருகிலுள்ளவர்களை ஆதாரமாகக் கொள்கிறார்கள். இதைத்தான் உலகம் சில சமயம் அன்பு என்றும், சில சமயம் காதல் என்றும், சில சமயம் நட்பு என்றும் கூறுகிறது. ஆனால் உண்மையில் இது ஒவ்வொருவரும் தம்மிடமே கொள்ளும் அன்பு. ஒருபுறம் ஈரம் வற்றிவிட்டால் மரங்களும் கொடிகளும் வாடிவிடுவதில்லை. அவற்றின் வேர்கள் வேறொரு புறத்தில் எங்கே ஈரம் இருக்கிறது என்று தேடுகின்றன. அருகில் இருந்தாலும் சரி, தொலைவில் இருந்தாலும் சரி, அந்த ஈரத்தைத் தேடிக் கண்டுபிடித்து, அவை பசுமையாக இருக்கின்றன.
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (Yayati: A Classic Tale of Lust)
“
जीवन का क्या यही नियम है कि दुःख के सात सागर पार किए बिना आनंद के सदाबहार फूल आते ही नहीं?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
धर्म भी आखिर क्या है? जिस तरह के व्यवहार की आशा मैं इस दुनिया से करता हूँ , उसी तरह का व्यवहार उसके साथ करने की श्रद्धा का ही नाम धर्मबुद्धि
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
ययाति, अन्य प्राणियों में शारीरिक सुख-दुःखों के परे की बातों को अनुभव करने की शक्ति नहीं होती। वह केवल मनुष्य को ही प्राप्त ईश्वरीय देन है। इसी अनुभूति के बल पर मनुष्य पशु-कोटि से ऊपर उठ पाया है, संस्कृति के दुर्गम पर्वत पर आरोहण करता चला आ रहा है। आज नहीं तो कल, वह उस पर्वत की चोटी पर पहुँच जाएगा। तब इन सभी अभिशापों से उसका जीवन मुक्त हो जाएगा।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
आकाश में बादलों की पीठ पर बिजलियों के कोड़े कड़क रहे थे। बादल हिनहिना रहे थे।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
कलाकार के नाते वह प्रणयिनी हो सकती थी, किन्तु पत्नी की भूमिका में प्रणयिनी वह कभी न बन सकी। भला ऐसा क्यों होता है? क्या नियति ने मानव को शाप दे रखा है कि वह इस तरह कभी एकरूप रह नहीं सकता?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मदिरा से उत्तेजित शरीर को स्त्री-सुख की प्यास शायद अधिक ही सताती
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मृत्यु! जीवन का कितना भयंकर रहस्य है! समुद्र के किनारे कोई नन्हा-सा बालक रेत का किला बनाता है। ज्वार की एक बड़ी लहर उमड़कर आती है और वह किला ऐसा गायब हो जाता है कि कोई निशानी तक पीछे नहीं छोड़ता। मानव-जीवन क्या रेत के किले से भिन्न है?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मेरा मन पीछा करने वाले शिकारी से जान बचा कर भाग खड़े होने वाले हिरन के समान दिशाहीन भटकने लगा।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
बरसों से इतनी मदिरा मैंने कभी नहीं पी थी। धीरे-धीरे उसका नशा मुझ पर सवार होता गया। वह उन्माद दूसरे उन्माद को भी जगाता गया। मुकुलिका, अलका, शर्मिष्ठा, देवयानी की कमनीय आकृतियाँ मेरी वासना को उद्दीप्त करने लगीं, आँखों के सामने नाचने लगींं अलका नीचे झुककर अपनी वेणी में गूंथे गजरे की सुगंध जैसे मुझे सुंघा रही थी। उस सुगंध को सूंघते-सूंघते मैं मदहोश हो गया। वह दूर जाने लगी। तुरंत ही मैंने वह गजरा उसकी वेणी से खींचकर उतार लिया। मैं दोनों हाथों से उसके सभी फूलों को मसल-मसलकर नाक के पास ले गया। काँपती आवाज़ में अलका ने पूछा–‘‘ऐसा भी क्या युवराज?’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘अभी मेरा जी भरा नहीं। और, मुझे और सुगंध चाहिए!’’ अलका को अपनी बाँहों में भरकर उसके अधरों की, आँखों की, बालों की, गालों की सारी-सारी सुगंध का आस्वाद लेने के लिए मैंने अपनी बाँहें फैलाई। किन्तु–मैंने आँखें खोलकर देखा–बार-बार देखा। अपने महल में मैं अकेला ही था। और अलका? वह कहाँ है? तहखाने में? नहीं! या कहीं और छिपी बैठी है? खरगोश के बिल में या शेर की गुफा में? ‘‘अलका, अलका’’ मैंने ज़ोर से आवाज़ दी। मेरी इस पुकार का किसी ने उत्तर दिया। किन्तु वह अलका नहीं थी, मुकुलिका थी। वह कहाँ थी? दूर! नहीं! मेरी बाँहों में थी! मैं उसका चुंबन ले रहा था। वह मुझे चुंबन दे रही थी। मैं आकाश का एक-एक नक्षत्र गिनता था और उसका चुंबन ले रहा था! नक्षत्र गिनकर समाप्त हो जाते पर चुंबन लेना नहीं रुकता। किन्तु–किन्तु मेरे होंठों को यह एकदम ठण्डा-ठण्डा-सा क्या लग रहा है? मुकुलिका कहाँ है? वह तो माधव के घर उसकी सेवा कर रही है। किन्तु माधव घर पर कहाँ है? वह–वह मृत्यु का हाथ पकड़कर–मेरे होंठों को होने वाला यह ठण्डा स्पर्श कहीं मृत्यु का तो नहीं? मैंने फिर आँखें खोलकर देखा। अपने महल में मैं अकेला ही था। शायद मृत्यु अदृश्य रूप में मेरे चारों ओर मंडराती होगी! क्या जीवन की यह मेरी अन्तिम रात है? कौन जाने? इस अन्तिम रात का आनंद मुझे लूटने दो, जी-भर कर उसका उपभोग कर लेने दो। जीवन का खाली होता जा रहा यह प्याला एक बार, एक ही बार, स्त्री-सुख की फेनिल मदिरा से भर लेने दो। आखिरी प्याला–यह आखिरी प्याला! ‘‘शर्मिष्ठा...शर्मिष्ठा...शमा, शमा...!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
सुंदर युवती को देखते ही उस पर मोहित होने वाला भी क्या कोई प्रेमी होता है? वह तो निरी लंपटता है! कोई भी स्त्री ऐसे प्रेम पर अपने-आप को न्यौछावर कर उसे स्वीकार नहीं करेगी!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
विजय का उन्माद मदिरा से भी विलक्षण होता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
क्या हर वासना शेर जैसी होती है? उसे एक बार जिस उपभोग का चसका लग जाए, उसी के पीछे वह पागल की तरह भागती है! शायद वासना के केवल जीभ ही होती है! भगवान ने उसे कान, आँखें, मन, हृदय कुछ नहीं दिया है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
किन्हीं शर्तों पर उर्वशी ने पुरुरवा के साथ रहना स्वीकार किया होता है । अनजाने में ही पुरुरवा उन शर्तों को भंग कर बैठता है। उर्वशी उसे छोड़कर चली जाती है। उसके वियोग में राजा पागल हो जाता है। उसकी खोज में जंगल-जंगल घूमता हुआ अन्त में वह एक जलाशय के पास आता है। वहाँ उसे अपनी प्रियतमा दिखाई देती है। राजा अपने साथ लौट चलने के लिए उसकी काफी मिन्नतें करता है। किन्तु उर्वशी की कठोरता भंग नहीं होती। निराश होकर राजा आत्महत्या के लिए प्रवृत्त हो जाता है और कहता है, ‘‘हे उर्वशी! तेरे साथ क्रीड़ा कर चुके तेरे पति का शरीर इस कगार से नीचे गिर जाय! या कहीं पर पड़ा रहने पर जंगल के हिंस्र भेड़िये उसे फाड़-फाड़कर खा जाएं !’’ उर्वशी उत्तर देती है, ‘‘हे पुरुरवा आप प्राण-त्याग न करें। इस कगार से व्यर्थ ही न कूदें। अपने शरीर को अमंगल भेड़ियों का भक्ष्य न बनाएं। राजन, एक बात हमेशा ध्यान में रखिए, स्त्रियों के साथ हमेशा स्नेह बना रहना असंभव है, क्योंकि उनका दिल भी भेड़ियों के दिल के समान ही होता है।’’ इतना कहकर उर्वशी अदृश्य हो जाती है। राजा उस स्थान को जहाँ वह खड़ी थी अपनी बाँहों में समेटने की कोशिश में मूर्च्छित होकर गिर पड़ता
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
घ्राणेंद्रिय का गुलाम हो जाता है। वह प्रजा पर राज्य तो करता है लेकिन उसकी इद्रियाँ उसके मन पर शासन चलाती हैं। स्त्री-सुख में सभी इंद्रिय-सुखों का संगम हुआ करता है। इसलिए हम योगी लोग उस शरीर-सुख को वर्जित मानते हैं।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
क्या कस्तूरी मृग को कभी पता भी होता है कि उसके अंतरंग में सुगंधित कस्तूरी है?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मैं किसी निर्जन द्वीप पर आया हूँ। इस द्वीप की रेत पर मानव के पदचिह्र कभी उठे नहीं! पशु, पक्षी, वृक्ष, लता, यहाँ कुछ भी नहीं! एकदम सुनसान, वीरान, विशालकाय चट्टानों से भरा द्वीप! इन चट्टानों पर उत्तुंग लहरों के कोड़े जमाते जा रहे प्रक्षुब्ध सागर से घिरा हुआ द्वीप! यहाँ साथ देने को है केवल श्मशान में गाने वाले भूतों के समान तरह-तरह की अजीब आवाज़ें करती बह रही काट खाने वाली तेज़ हवा! सूरज के प्रकाश में इस द्वीप की वीरान तन्हाई असहनीय बन जाती। रात के अंधेरे में उसकी भयानकता दूनी हो जाती !
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
पुरुष इसी तरह बेवफा होते हैं! छली! कठोर! पाषाण-हृदयी! जाल समेत उड़ निकलने वाले पंछियों के समान वे भागकर दूर-दूर चले जाते हैं और स्त्रियाँ आँखों से दूर होते जा रहे उन्हीं प्रीति-पाशों में अपने अंतः-करणों को उलझाकर रोती बैठती रहती है। फूल
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मनुष्य प्रकृति और परमात्मा के बीच की सर्वश्रेष्ठ कड़ी है। परमात्मा द्वंद्वातीत है और प्रकृति को द्वंद्व की कोई कल्पना तक नहीं होती है। उसकी कल्पना केवल मनुष्य ही कर सकता है! वही नदी जो प्यास से तड़पते मनुष्य की तृषा को शांत करती है, गहरे पानी में उतरने पर उसकी जान भी ले लेती है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मेरे इस बुढ़ापे को देख रहे हो न?’’ ‘‘जी।’’ ‘‘यह मुझे एक अभिशाप में मिला है। राजपाट के बदले में इसे ले लेने वाले मेरे परिवार के, मेरे रक्त के तरुण की खोज है मुझे! मेरी मृत्यु होते ही उसे अपना यौवन वापस मिल सकता
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मुझे राजपाट नहीं चाहिए माँ! मुझे पुत्र-धर्म का पालन-भर करना है। पिताजी की इच्छा पूरी करनी है। मैं महाराज का पुत्र हूँ। उनका बुढ़ापा ग्रहण करने के मेरे अधिकार को कोई अमान्य नहीं कर सकता।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
कला की दुनिया विकार, विचार, वासना आदि सभी क्षणिक बातों के परे होती है
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मेरी दृष्टि में तुम महारानी हो । दासी तो वास्तव में देवयानी है! वह ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा और अहंकार की दासी हो बैठी है! अपनी आत्मा को स्वार्थ, वासना और भोगों का शिकार बनाने वाला ही इस संसार मेें हमेशा दासता में सड़ता रहता है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
पुरुष स्वभावतः आकाश का पुजारी है! स्त्री को धरती की पूजा अधिक प्यारी है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
शहद का छत्ता उतारने वाले को दंश मार-मारकर मधु-मक्खियां जिस तरह उसका जीना हराम कर देती हैं, इन स्मृतियों ने वैसी ही हालत मेरी भी कर डाली थी।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
स्त्री पुरुष को कितनी जल्दी पहचान लेती है! पुरुष की आँखों में उसके सारे गुण, सारे दोष उसे साफ दिखाई देते हैं!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
लंपट पति ही पत्नी की मुट्ठी में रहता है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
विकसित मनुष्य प्रकृति से काफी बड़ा होता है। वह प्रकृति पर अधिकार कर सकता है किन्तु ऐसा वह प्रकृति से मुख मोड़कर या प्रकृति को ठुकराकर नहीं, उसके अस्तित्व को स्वीकार करके ही कर पाता है! जीवन को केवल आत्मा या केवल शरीर मानना दोनाें एकदम आत्यंतिक सिरे वाली कल्पनाएं हैं, सर्वथा गलत विचार
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
राजप्रासाद–राजप्रासाद ही क्यों, सत्ता और संपत्ति का प्रत्येक केंद्र एक प्रचण्ड अजगर जैसा होता है। वह भीषणतम राज़ को अत्यंत सहजता से निगल जाता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
विचारवान पुरुष ज़हरीले महासर्षों की अपेक्षा अत्यंत नुकीले शस्त्रों की अपेक्षा या लपलपाती ज्वालाओं से चहुं ओर फैलती जाने वाली प्रज्वलित अग्नि की अपेक्षा तपस्वी ब्राह्मणों से अधिक डरा करते हैं, सर्प एक को दंश करता है, शस्त्र शायद अनेकों को मौत के घाट उतार देते हैं अग्नि सारा गांव जलाकर ढेर कर सकती है, किन्तु तपस्वी ब्राह्मण का क्रोध समूचे राष्ट्र का संहार कर सकता है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
बुद्धि भावना और शरीर के त्रिवेशी संगम का नाम है मानवी जीवन। संगम की पवित्रता उसकी एक-एक नदी में कैसे आ सकती है?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
हे पारथी, सीना फटते तक दौड़ने वाले इस हिरन का दुःख तुम समझ लेना चाहती हो न? तो इन हिरन को शिकारी बनने दो। तुम्हारा धनुष-बाण उसके पास रहने दो। और तुम?–तुम हिरन बन जाओ।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
सिंहासन की अपेक्षा मृगाजिन पर बैठने का आनंद बहुत बड़ा होता है
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
वायु विश्व का प्राण है। उसकी मंद लहरें हमेशा सबके मन को भाती रही हैं। किन्तु वही जब झंझा का रूप धारण कर लेता है तो सारा जंगल उससे घृणा करने लगता है। प्रत्येक वासना की अवस्था भी ऐसी ही होती है।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
आत्मा वा अरे मन्तव्यः श्रोतव्यः निदिध्या-सितव्य:!—हे मानव, आत्मा के स्वरूप का चिंतन करो, आत्मा की पुकार सुनो। आत्मज्ञान को ही अपना लक्ष्य बनाओ! उसी की धुन में मस्त हो जाओ।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
कच आगे कहने लगा, ‘‘तुम मेरी केवल बहन नहीं हो, मेरी गुरु भी हो। मेरी मान्यता थी कि संजीवनी प्राप्त करते समय मैंने अपनी जाति के लिए बड़ा त्याग किया है। किन्तु तुमने मुझसे भी कहीं श्रेष्ठ कोटि का त्याग किया
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
सभी स्पर्श एक-से नहीं हुआ करते बहन!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
वंसत-नृत्य में देवयानी कितनी सुंदर, क्या ही कोमल और एकदम निष्पाप लग रही थी! किन्तु इसी समय उसके अन्तरंग में कितनी क्रूर स्त्री भीषण कल्पना का प्राणहारी तांडव कर रही होगी! मानव भी देव और दानव का क्या ही अजीब संकर है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
मन को रिझाना देवयानी को खूब आता था, किन्तु केवल कला की अभिव्यक्ति में! केवल एक कलाकार के रूप में! मेरे साथ ऐसी अठखेलियाँ उसने कभी की नहीं।
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
उसने तुरंत उत्तर दिया था, ‘‘बड़े रसिक मालूम देते हो। किन्तु भूलना नहीं कि जिसने तुम्हें यह रसिकता दी है उसीने उस पंछी को जान भी दी है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
पाप और पुण्य तो धूर्त पंडितों और मूर्ख मनुष्यों द्वारा घड़ी गई कल्पनाएं हैं। इस दुनिया में केवल सुख या दुख ही सत्य है, बाकी सब माया है। पाप और पुण्य मन के मात्र आभास हैं कल्पना के खेल हैं। मैं अपने भक्तों को तीर्थ के रूप में हमेशा
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
चोटी पर से नीचे गहरी खाई में लुढ़कता जा रहा हूँ। इस खाई का कोई अन्त नहीं है। प्रकृति के प्रारम्भ से आज तक सूर्य की एक भी किरण इस खाई में कभी आई ही नहीं है!
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
खिलते फूलों को कोई कितना ही छिपाकर रखे सुगंध से तो उनका पता चले ही जाता है
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])
“
प्रकृति का यही नियम है कि मनुष्य अपने अन्तरमन में अकेला ही रहे?
”
”
Vishnu Sakharam Khandekar (ययाति [Yayati])