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सीपी तकिये पे तुम्हारा वो निशान,
चादर पे तुम्हारी सिलवटें,
तुम्हारे हिस्से की रजाई की वो नर्म गरमी,
और सहर की ठंडक |
सुबह की चाय से नहीं,
तुम्हारे एहसास से रवाँ होता है दिन मेरा !
चोर हूँ मैं....
ओंस की बूंदों सी नर्म-पाक़ आँखें तुम्हारी,
जब बेपरवाह शरारत छिड़कतीं हैं मुझ पर,
झट से खोल बाहें, समेट लेता हूँ सारी,
कि यह प्यार के छीटें हैं,
रंग भर देते हैं आँखों में मेरी...
बूंदें चमकतीं है भीगी हुई लहराती रात मैं,
लहरों से बनते हैं, उमड़ते हैं,
बाल संवरते-सुखाते |
अपने चेहरे पे गिरा लेता हूँ हर टूटता तारा,
कि यह सूकून कि बूंदें हैं,
रूह चमकती है इनके छूने से !
चोर हूँ मैं...
चुराया है तुम्हारे हर उस एहसास को,
जो 'तुम' हो,
जिसे मैं 'जी' सकता हूँ,
पर तुमसे ले नहीं सकता...
बिस्तर में मिली तुम्हारी बिंदी,
खुद पे तुम्हारे हाथों का एहसास,
मुझ ही से शर्माकर तुम्हारा,
मुझ ही में सिमट जाना,
"ओहफ़ो ! तुम्हें तो हाथ धोने भी नहीं आते !"
छोटी सी बात पे तुम्हारा ख़ूब हंसना,
पिज़्ज़ा के प्लैन पे तुम्हारी आँखों कि चमक,
किसी कमरे से आती तुम्हारी हँसी कि खनक,
तुम्हारा मुझ पे बेपनाह नाज़ होना,
सोने से पहले तुम्हारा मुझसे लिपट जाना !
चोर हूँ मैं,
एक सीपी छुपा रखी है मैंने,
जिसमें संभाले हैं तुम्हारे सारे लम्हे |
जब भी देखता हूँ तो वह रुपहला मोती,
थोड़ा और बड़ा लगता है
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