“
Love thy neighbor as thyself because you are your neighbor. It is illusion that makes you think that your neighbor is someone other than yourself.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan
“
It is not God that is worshipped but the authority that claims to speak in His name. Sin becomes disobedience to authority not violation of integrity.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan
“
It is the intense spirituality of India, and not any great political structure or social organisation that it has developed, that has enabled it to resist the ravages of time and the accidents of history.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Indian Philosophy: Volume I)
“
The idea of Plato that philosophers must be the rulers and directors of society is practiced in India.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Indian Philosophy: Volume I)
“
anubhavāvasānameva vidyā phalam. The fruit of knowledge, the fruit of vidyā is anubhava.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Foundation of Civilisation: Ideas and Ideals)
“
सत्य को जो जानते हैं वे सत्य बन जाते हैं, ‘ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति’।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
प्रार्थना सत्य का अन्वेषण है, जिसके लिए चेतना के उत्थान द्वारा अंतःस्थित अज्ञात में प्रवेश करना होता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
Discontent with the actual is the necessary precondition of every moral change and spiritual rebirth.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Indian Philosophy: Volume I)
“
The complete use of pure reason brings us finally from physical to metaphysical knowledge. But the concepts of metaphysical knowledge do not in themselves fully satisfy the demand of our integral being. They are indeed entirely satisfactory to the pure reason itself, because they are the very stuff of its own existence. But our nature sees things through two eyes always, for it views them doubly as idea and as fact and therefore every concept is incomplete for us and to a part of our nature almost unreal until it becomes an experience.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (A Sourcebook in Indian Philosophy)
“
The Flag Code then quotes Sarvepalli Radhakrishnan, India’s second president, who explained: The saffron color denotes renunciation or disinterestedness. Our leaders must be indifferent to material gains and dedicate themselves to their work. The white in the center is light, the path of truth to guide our conduct. The green shows our relation to the soil, our relation to the plant life here on which all other life depends. The Ashoka wheel in the center of the white is the wheel of the law of dharma. Truth or Satya, dharma or virtue ought to be the controlling principles of all those who work under this flag.
”
”
Yuval Noah Harari (21 Lessons for the 21st Century)
“
There is death in stagnation. There is life in movement.
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan
“
सार्थक ज्ञान केवल वही होता है जो चीज़ों की प्रकृति में अंतःप्रवेश करता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
निरपेक्ष सत्ता का आनंददायी दर्शन जब चकित द्रष्टा को एक बार हो जाता है तो इंद्रियगाह्य का रस उसके लिए समाप्त हो जाता है
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सत्य को यदि ज्ञान का विषय समझने की गलती की जाएगी तो वह जाना नहीं जा सकेगा।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
आत्मा ही उसका अपना प्रकाश होती है, ‘आत्मैवास्य ज्योतिर्भवति’।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
शरीर, प्राण, मन और बुद्धि के परिधानों के पीछे वह हमारी गहनतम सत्ता है। वस्तुपरकता सत्य की कसौटी नहीं है, बल्कि हमारी सत्ता में ही प्रकट हुआ सत्य स्वयं कसौटी है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सत्य की प्राप्ति बुद्धि के बल से या बहुत अध्ययन से नहीं होती है, बल्कि जिसकी इच्छा ईश्वर में शांति से केंद्रित हो जाती है, सत्य उसके सम्मुख प्रकट हो जाता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
बुद्धि की निर्मलता बुद्धि की संकुलता से अलग चीज़ है। दृष्टि की निर्मलता के लिए हममें बालकों का-सा स्वभाव होना चाहिए, जिसे हम इन्द्रियों के उपशमन, हृदय की सरलता और मन की स्वच्छता से प्राप्त कर सकते हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
यदि हमारा मन शांत नहीं है तो हम आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अपने भीतर देखने की, आदत विकसित करनी चाहिए। अलगाव की एक प्रक्रिया द्वारा हम जानने, महसूस करने और कामना करने के पार मूल आत्मा पर, अपने अन्तस्थ ईश्वर पर पहुँचते हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अपनी अन्तस्थ शान्ति में लौटकर मूल आत्मा पर एकाग्र हो जाना चाहिए जो समस्त विश्व का आधार और सत्य है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
शब्द हम प्रयुक्त करते हैं और जिन विचारों को प्रयोग में लाते हैं, वे सब वास्तविकता से छोटे पड़ते हैं।27 अनुभव समस्त अभिव्यक्ति से परे है
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अनुभव’ को श्रुति में विशुद्ध और प्रत्यक्ष बौद्धिक अन्तर्दृष्टि कहा गया है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अनुभवों या उनके सुरक्षित विवरणों पर विचार करके उन्हें एक युक्तियुक्त पद्धति में परिवर्तित कर देते हैं तो हमें ‘स्मृति’ प्राप्त होती है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अन्त-स्फूर्ति ज्ञान शुद्ध बुद्धि है, मूल सत्य के लिए क्षमता है। यह आत्मा की संपत्ति है, या आत्मा का अपने निजी आधार और गहराई में प्रवेश करके मूल सत्ता बन जाना है। वह जब अपने पर ध्यान केन्द्रित करती है तो वह ज्ञान आवश्यक रूप से उद्भूत होता है। यह ज्ञान, शंकर के अनुसार शाश्वत है, सर्वव्यापी है और आवश्यक है। यह नष्ट नहीं हो सकता, यद्यपि ओझल हो सकता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
दिखावटी ज्ञान है वह उस अंधे व्यक्ति के प्रकाश के ज्ञान की तरह है जिसके भीतर प्रकाश कभी प्रविष्ट नहीं हुआ है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
मनुष्य ईश्वर और प्रकृति के बीच मध्यस्थ है
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
वैराग्य की भूमि पर दुर्लभ आत्मिक फल पकते हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
वैराग्य आसक्ति का विरोधी है, भोग का विरोधी नहीं है। विरक्ति की भावना से भोग करो,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जीवन को उसके बहाव पर बहने देते हैं और वह सागर की लहर की तरह उठता है और फूल की तरह खिलता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
मन और हृदय को शुद्ध करने का उपाय ध्यान है। इसका अर्थ है विश्राम, मानसिक हलचल को रोकना, अन्तर के उस एकान्त में लौटना जहाँ आत्मा परमात्मा की फलदायी नीरवता में लीन हो जाती है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जीवन की एक यज्ञ से तुलना की गई है जिसमें तप, दान, साधुता, अहिंसा और सत्यवादिता ही दक्षिणा है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
देवों में इच्छाएं (काम) होती हैं, मनुष्य ‘लोभ’ से पीड़ित हैं और असुर ‘क्रोध’ से।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जो बिजली की गरज में सुने जाते हैं। वे इस प्रकार हैं : ‘दम’ अर्थात् आत्मनिग्रह, “दान’ और ‘दया’।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
संयम, चारित्रिक शुद्धता, एकान्त और मौन आत्म-निग्रह के उपाय हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
तप’ आध्यात्मिक लक्ष्यों के लिए अपनाया गया कठोर आत्मानुशासन है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
एक प्रलोभन के प्रतिरोध से जो बल प्राप्त होता है, उससे हमें दूसरे प्रलोभन पर विजय पाने में सहायता मिलती है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
पूर्ण मनुष्य एक दिव्य बालक है,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
दान श्रद्धा के साथ देना चाहिए, अश्रद्धा के साथ नहीं देना चाहिए। उदारता, विनम्रता, भय और सहानुभूति के साथ देना चाहिए।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
बालक का कुशल अज्ञान जीवन से जुड़ा होता है
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
आजन्ममरणान्तं च गंगादितटिनीस्थिता:। मण्डूकमत्स्यप्रमुखा: योगिनस्ते भवन्ति किम्?।।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
साधुता की खेती मौन से होती है।” “मौन और आशा में ही तुम्हारी शक्ति होगी।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जब सभी कुछ शान्त मौन में था और रात्रि अपनी राह के मध्य में थी, तब ‘शब्द’ स्वर्ग से नीचे कूद पड़ा।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
वह गरजा, ‘क्या छत पर भी कभी कोई ऊँट ढूँढ़ता है?’ वे बोले, ‘हम आपका ही अनुकरण कर रहे हैं, जो तख्त पर बैठकर अल्लाह को पाना चाहते हैं।’ 21
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
हेरेक्लिटस के अनुसार : “वह राज्य बालक का है”, “जब तक तुम बदलोगे नहीं और छोटे बालक नहीं बनोगे, तब तक उस स्वर्गीय राजय में प्रवेश नहीं पा सकोगे।”–जीसस।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
नीत्शे कहते हैं : “बालक भोलापन है और विस्मृति है, एक नया आरम्भ है, एक खेल है, अपने-आप लुढ़कने वाला पहिया है, एक आदिम गति है, एक पवित्र ‘हाँ’ (स्वीकृति) है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जिसका अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण है, जो आत्मा में आनन्द पाता है और जो ज्ञानप्राप्ति के लिए उत्सुक है, उसके लिए घर कारागार नहीं है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
दिव्य मूलाधार में स्थित नहीं हो जाते, तब तक हम संसार के अनन्त घटना-क्रम से बँधे रहते हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अस्तित्व के ही नियम का प्रकाशन है।2 विश्व-व्यवस्था दिव्य मानस की प्रतिच्छाया है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
क्या तुम यह सोचते हो कि मनुष्यों के दुष्कर्म ऊपर आकाश को उड़ते हैं, और तब कोई हाथ उनका लेखा-जोखा ईश्वर की पटि्टयों पर लिखता है, और ईश्वर, उन्हें पढ़-पढ़कर, संसार का न्याय करता है? नहीं, आकाश के गुम्बज में इतनी जगह नहीं है कि वहाँ पृथ्वी के अपराध लिखे जा सकें, और न ईश्वर के लिए स्वयं उनका दण्ड देना उपयोगी है, न्याय यहीं पृथ्वी पर होता है, पर तुम्हारे आँखें होनी चाहिए।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
ज्ञान हमें उस स्थिति पर ले जाता है जहाँ कामना शान्त हो जाती है,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जब मन ध्यान की शक्ति से परमात्मा का रूप धारण कर लेता है, तो वह ‘संप्रज्ञात समाधि’ होती है, जिसमें जीव को यह ज्ञात होता है कि उसकी चेतना ने ब्रह्म का स्वरूप धारण कर लिया है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
आध्यात्मिक ज्ञान (विद्या) जगत् को नहीं मिटाता है, बल्कि उसके सम्बन्ध में हमारे अज्ञान (अविद्या) को मिटा देता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
हम जगत् में रहते और कार्य करते रहते हैं, पर हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जन्म ब्रह्म का ब्रह्माण्डीय सत्ता में एक रूपान्तर है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
शारीरिकता बन्धन पैदा नहीं करती है, बल्कि मनोवृत्ति पैदा करती है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सत्य अपौरुषेय और नित्य है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अंतःप्रेरणा एक संयुक्त प्रक्रिया है और मनुष्य की ध्यानावस्था तथा ईश्वरप्रदत्त दिव्यज्ञान उसके दो पक्ष हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
आध्यात्मिक जीवन का वर्णन मिलता है, जो भूत, वर्तमान और भविष्य में सदा एक-सा है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
संहिताओं और ब्राह्मणों में, जो सूक्तों और पूजा-पद्धतियों के ग्रन्थ हैं, वेद का कर्मकांड भाग आता है, जबकि उपनिषदों में ज्ञानकांड भाग है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
चिन्तन में कुछ तरलता है,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
ब्रह्मसूत्र उपनिषदों की शिक्षा का संक्षिप्त सार है,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सत्य ब्रह्म या आत्मा है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
तत् त्वम् असि’ समस्त सत्ता का आधारभूत तथ्य है।6 जगत् की विविधता, जीवन का अनन्त प्रवाह केवल एक दृश्य के रूप में ही वास्तविक है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
महान लेखक तक, जिनमें अन्तःप्रेरणा प्रचुर मात्रा में होती है, अपने वातावरण की उपज होते हैं। वे अपने युग के गहनतम विचारों को वाणी देते हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सायण के अनुसार, वेद वह ग्रन्थ है जो इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट को रोकने का अलौकिक उपाय बताता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
प्रत्येक के चार विभाग हैं : (1) संहिता, अर्थात् मंत्रों, प्रार्थनाओं, स्वस्तिवाचन, यज्ञविधियों और प्रार्थना-गीतों का संग्रह; (2) ब्राह्मण, अर्थात् गद्यलेख, जिनमें यज्ञों और अनुष्ठानों के महत्त्व पर विचार किया गया है; (3) आरण्यक, अर्थात् वनों में रचित ग्रंथ, जिनका कुछ भाग ब्राह्मणों के अंतर्गत और कुछ स्वतंत्र माना जाता है; और (4) उपनिषद्।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
मंत्र वह है जिसके द्वारा ईश्वर का ध्यान किया जाता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
विश्व के विराट रूप और जीवन के अपार रहस्य से चमत्कृत कवि-मनों के उद्गार हैं। इन उल्लासपूर्ण सूक्तों में, जो प्रकृति के अद्भुत रूपों को देवत्व प्रदान करते हैं, जीवन के कौतुक के प्रति सीधे-सादे किंतु निश्छल मनों की प्रतिक्रियाएं चित्रित हैं। इनमें देवों9 –सूर्य, सोम (चन्द्रमा), अग्नि, द्यौ (आकाश), पृथ्वी10, मरुत् (झंझावात), वायु, अप्, (जल), उषा जैसे देवताओं–की उपासना है। इन्द्र, वरुण, मित्र, अदिति, विष्णु, पूषा, दो अश्विनीकुमार, रुद्र और पर्जन्य जैसे देवताओं का भी, जिनके नाम अब उतने सुस्पष्ट नहीं हैं, आरम्भ में प्राकृतिक व्यापारों से सम्बन्ध था।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अग्नि मनुष्यों और देवताओं के बीच मध्यस्थ का काम करता है। मंत्रों में उसे प्रिय मित्र और गृहपति कहा गया है। वह यज्ञ की आहुतियों को देवताओं तक पहुँचाता है और देवताओं को नीचे यज्ञ में लाता है। वह बुद्धिमान है, पुरोहित है। मित्र प्रकाश का देवता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
वरुण, जो भारतीयों और ईरानियों, दोनों का देवता है, सूर्य के मार्ग और ऋतुओं के क्रम का नियामक है। वह जगत् को व्यवस्थित रखता है तथा सत्य और व्यवस्था का, जो मानव-जाति के लिए अनिवार्य है, मूर्तरूप है। वह नैतिक नियमों का रक्षक है और पापियों को दंड देता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
मित्र, वरुण और अग्नि–ये महान ज्योतिर्मय सूर्य के तीन नेत्र हैं
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
ऋत या व्यवस्था की धारणा से इस प्रवृत्ति को और बल मिलता है। विश्व एक व्यवस्थित पूर्णता है, अव्यवस्था (अकोस्मिया) नहीं है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जगत् की एकता एक ईश्वर की धारणा की द्योतक है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
दर्शन आश्चर्य में से उभरता है,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
देवता कभी इतने शक्तिशाली थे, वे जब चिन्तन के कारण छायामात्र रह जाते हैं तो हम श्रद्धा के लिए प्रार्थना करते हैं : “हे श्रद्धा, हमें विश्वास प्रदान करो!
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
प्रथम तत्व, वह एक, अवर्णनीय है। वह गुणों से और दुर्गुणों से भी मुक्त है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सब अंधकार से घिरा अंधकार था, एक अभेद्य शून्य या जल का अगाध गर्त था।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
अपने को सीमित करके वह स्रष्टा बन जाता है। बाहर की कोई चीज़ उसे सीमित नहीं कर सकती। वही केवल अपने-आपको सीमित कर सकता है। अपने को व्यक्त करने के लिए वह अपने अतिरिक्त किसी अन्य पर निर्भर नहीं है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
परमात्मा पर निर्भर होते हुए भी वह जीव के अहं को बाह्य प्रतीत होता है, और उसके अज्ञान का स्रोत है। जल रूपहीन असत् का प्रतिनिधि है, जिसमें कि अंधकार से ढका वह दिव्य पड़ा रहता है। इस प्रकार हमें परम निरपेक्ष, अपने को सीमित करने की शक्ति, सीमित आत्म का आविर्भाव और अनात्म, जल, अंधकार, पराप्रकृति प्राप्त होते हैं। अगाध गर्त अनात्म है–मात्र क्षमता, केवल अमूर्त, जो समस्त विकास-क्रम का आधार है। आत्मचेतन सत्ता इस पर अपने रूपों या विचारों की छाप डालकर इसे अस्तित्व प्रदान करती है। अव्यक्त और असीमित आत्मचेतन ईश्वर से सीमाएं प्राप्त करता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
यह विचार कि इस अथाह गर्त में से शक्तिशाली किंतु दृष्टिहीन इच्छा का उदय होता है और वह कल्पना द्वारा अपने-आपको एक सोद्देश्य संकल्प में डालती है, जो दिव्य आत्मा का मर्म है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
संपूर्ण जगत सत् और असत् के मेल से बना है और परमेश्वर के सम्मुख यह असीमितता, यह अस्तित्व की आकांक्षा होती है।32 ऋग्वेद असत् का वर्णन करते हुए कहता है कि वह प्रसव-पीड़ा से आक्रांत स्त्री की तरह ‘पांव फैलाए’ पड़ा है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
मन में गहरे पैठते हुए, मनीषा द्वारा, सत् और असत् के परस्पर-संबंध को इस ‘काम’ में खोजा है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
ब्रह्म सत् और ज्ञान से परे है। वह अपुरुषविध और निर्गुण ईश्वरत्व है, जो सभी उत्पन्न सत्ताओं और पदार्थों से परे है। वह मनुष्य के आगे मानवीय अनुभव की सर्वोच्च अवस्थाओं में, सत्य के रूप में व्यक्त होता है। ईश्वर को ब्रह्म का विकास या ब्रह्म की अभिव्यक्ति बताया गया है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
प्राण का आविर्भाव तब होता है जब ऐसी भौतिक परिस्थितियाँ उपलब्ध होती हैं जो प्राण को भूतद्रव्य में संगठित होने देती हैं। इस बात को हम यों कह सकते हैं कि भूतद्रव्य प्राण की ओर उठना चाहता है, परन्तु प्राण निष्प्राण कणों द्वारा उत्पन्न नहीं होता है। इसी प्रकार प्राण के लिए यह कहा जा सकता है कि वह मन की ओर उठना चाहता है या उससे युक्त होता है। और मन वहाँ इस बात के लिए तैयार होता है कि जैसे ही परिस्थितियाँ उसे सजीव द्रव्य में संगठित होने दें, वह उसमें से उभर आए। मन मनहीन वस्तुओं से उत्पन्न नहीं हो सकता। जब आवश्यक मानसिक परिस्थितियाँ तैयार हो जाती हैं, तो मानसिक प्राणी में बुद्धि की विशेषता आ जाती है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
ब्रह्म के आत्म-संगोपन
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जल आरम्भ में शान्त है और इसलिए लहरों या आकारों से मुक्त है। पहला स्पन्दन, पहला संक्षोभ आकार पैदा करता है और सृष्टि का बीज है। दो का खेल सृष्टि का जीवन है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जितना कुछ भी ज्ञात और अभिहित है उस सबकी एकता ब्रह्म है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
आस्तिक वह है जो ऋग्वेद 10. 31. 8 की तरह, यह मानता है कि ‘नैतावद एना परो अन्यद अस्ति’–केवल यही नहीं है, बल्कि कुछ अन्य अतींद्रिय भी है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जलालुद्दीन रूमी— खनिज के रूप में मैं मरा और पौधा बन गया, पौधे के रूप में मैं मरा और पशु बनकर उभरा, पशु के रूप में मैं मरा और मनुष्य बन गया, मुझे भय क्यों हो? मरने से मुझमें कमी कब आई है? मनुष्य के रूप में मैं अभी एक बार और मरूँगा, जिससे कि स्वर्गीय देवदूतों के साथ उड़ सकूँ,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
परन्तु देवदूत की स्थिति से भी मुझे आगे जाना है। ईश्वर के सिवा सभी नष्ट होते हैं देवदूत की अपनी आत्मा का वलिदान कर देने पर मैं वह बन जाऊंगा जिसकी किसी भी मन ने कभी कल्पना नहीं की है अरे, मेरा अस्तित्व न रहे। क्योंकि अस्तित्वहीनता यह घोषणा करती है कि ‘हम उसी में लौट जाएंगे।’।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
पर्वतों के पैदा किए जाने और इस पृथ्वी और इस संसार तक के बनाए जाने से भी पहले से, तुम अनादि काल से ईश्वर हो और अनंत संसार हो।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
जब मैं आधार में, गहराई में, ईश्वरत्व के प्रवाह और सोते में आऊंगा तो कोई भी मुझसे यह नहीं पूछेगा कि मैं कहां से आया हूं या कहां जाऊंगा। तब कोई भी मेरा अभाव अनुभव नहीं करेगा। ईश्वर तब गायब हो जाता है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
उपशान्तोऽयमात्मा’। तुलना करें इस माध्यमिक मत से–‘परमार्थतस्तु आर्याणां तूष्णीम्भाव एव’। “केवल तभी तुम उसे देखोगे जब उसके विषय में बोल नहीं सकोगे, क्योंकि उसका ज्ञान गहरा मौन और सभी इन्द्रियों का दमन है।”–हर्मस ट्रिस्मेगिस्टस,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
कोई ऐसी चीज़ थी जो निराकार पर पूर्ण थी, स्वर्ग और पृथ्वी से पहले जिसका अस्तित्व था, जो शब्दरहित थी, द्रव्यरहित थी, जो किसी पर निर्भर नहीं थी, अपरिवर्तनशील थी, जो सर्वव्यापक थी, अक्षय थी, उसे आकाश के नीचे विद्यमान सभी चीज़ों की जननी कहा जा सकता है, उसका सही नाम हमें ज्ञात नहीं, हमने उसका कल्पित नाम ‘ताओ’ रखा है। –‘ताओ ती चिंग’,
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
प्रकाश संप्रेषण का तत्त्व है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
निरपेक्ष अपनी आदि शांत मुद्रा से बाहर आ गया है और ज्ञान-संकल्प बन गया है। वह सर्व-निर्णायक तत्त्व है। ईश्वर और स्रष्टा के रूप में वह कार्यरत निरपेक्ष है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
पारलौकिक अनुभवातीतता और लौकिक सर्वव्यापकता–ये दोनों ही एक सर्वोच्च के वास्तविक रूप हैं।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
निर्गुण और सगुणब्रह्म, दोनों अलग-अलग नहीं हैं। जयतीर्थ कहते हैं कि शंकर का ब्रह्म को दो प्रकार का मानना ठीक नहीं है... ‘ब्रह्मणो द्वैरूप्यस्य अप्रामाणिकत्वात्।37 विभिन्न रूपों में वर्णित वह वही ब्रह्म है।
”
”
Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))
“
सत्य की चार मुद्राएं या स्थितियां मिलती हैं : (1) निरपेक्ष, ‘ब्रह्म’ (2) सृजनात्मक शक्ति, ‘ईश्वर’, (3) विश्व-आत्मा, ‘हिरण्यगर्भ’, और (4) जगत्। हिंदू विचारक परम सत्य के अखंड स्वरूप की इसी तरह व्याख्या करते हैं।
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Sarvepalli Radhakrishnan (Upnishadon Ka Sandesh (Hindi Edition))