Dhoop Quotes

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सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye mein Dhoop])
मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye mein Dhoop])
एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye Mein Dhoop])
रह—रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी आगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye mein Dhoop])
एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सी आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye mein Dhoop])
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे कट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़ रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख.
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye mein Dhoop])
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख, घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख। एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ, आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख। अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह, यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख। वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे, कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख। ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है, रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख। राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई, राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।
Dushyant Kumar (साये में धूप [Saaye mein Dhoop])
Kahin kuchh door se kaanon mein padhti hai agar Urdu To lagta hai Ke din jaadon ke hain, khidki khuli hai, dhoop andar aa rahi hai
Raza Mir (Ed. and Tr.) (The Taste of Words: An Introduction to Urdu Poetry)
जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए
Dushyant Kumar, Saaye me Dhoop