Waqt Hindi Quotes

We've searched our database for all the quotes and captions related to Waqt Hindi. Here they are! All 20 of them:

ज़िन्दगी फिर चलेगी और फिर किस्से बुनेगी और फिर किसी भटकते लम्हे में एक दिन यह कलम पिरो लेगी सारी कहानियों को एक धागे में | फिर अफ़साने बनेंगे, फिर कुछ शेर, काग़ज़ पर सवार हो, पल भर का सुकूं बांटने निकलेंगे | फिर किसी कोहरे भरी सहर में आग जलेगी गुज़रे वक़्त की और ठिठुरते से जमा हो जायेंगे हम सारे, ज़िन्दगी से रूबरू होने, कहते : "कोई क़िस्सा सुना ऐ ज़िंदगी , आँखें ख़ाली...सांसें हताश हैं ! " ...की यह लफ़्ज़ों का कारवां तब तक है, जब तक की सांसों का | सांस चलते फिर मिलेंगे.....अलविदा
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
Use door se hi dekhta raha bas yuhi waqt katta raha Na jaane kyu nigahe thami rahi bas uske chahre pe hi thami rahi Kabhi Chand samajhkar to kabhi chandani Hum use dekhte rahe tarjeeb se par kabhi socha na tha ki unka kabhi didar hoga itne kareeb se
Film-Table No 21 Indian
Waqt ki baat hai Jo kabhi tumhare bina puche tumhe sab kuch batana chahti thi, aaj wahi tumhare puchne par bhi tumhe kuch nahi batana chahti hai.
Manisha Jain
कौंन हैं ज़रिया, कौन मुद्दा ? कौन हैं सफ्फा और कौन कहानी? फ़िराक का ही है बयां हर क़िस्सा, किस्सों का बयां यह ज़िंदगानी ...
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
बड़ा अजब है ये ज़िन्दगी का खेल भी. हम कुछ रूहों के टुकड़े लेकर आते हैं, कुछ से अपने नाता समझने लगते हैं और कुछ रूहें हम में यूँ घुल मिल जाती हैं कि लगता है हम एक ही हैं. एक ऐसा एहसास जो किसी और एहसास में अपना अक्स नहीं दिखा सकता | और फिर, वक़्त लगते, हम कुछ नयी रूहों को जिस्मानी रूप दे देते हैं, बस जादू कि तरह ! खुद भी नहीं जानते हम कि यह बेपाक सी रूह हमने कैसे क़ैद कर ली इस नन्हे से जिस्म में और क्यों ये हमें अब बेपनाह चाहती है, प्यार करती है, कुछ ऐसे जैसे पहले कभी किसी ने नहीं किया !
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
सीपी तकिये पे तुम्हारा वो निशान, चादर पे तुम्हारी सिलवटें, तुम्हारे हिस्से की रजाई की वो नर्म गरमी, और सहर की ठंडक | सुबह की चाय से नहीं, तुम्हारे एहसास से रवाँ होता है दिन मेरा ! चोर हूँ मैं.... ओंस की बूंदों सी नर्म-पाक़ आँखें तुम्हारी, जब बेपरवाह शरारत छिड़कतीं हैं मुझ पर, झट से खोल बाहें, समेट लेता हूँ सारी, कि यह प्यार के छीटें हैं, रंग भर देते हैं आँखों में मेरी... बूंदें चमकतीं है भीगी हुई लहराती रात मैं, लहरों से बनते हैं, उमड़ते हैं, बाल संवरते-सुखाते | अपने चेहरे पे गिरा लेता हूँ हर टूटता तारा, कि यह सूकून कि बूंदें हैं, रूह चमकती है इनके छूने से ! चोर हूँ मैं... चुराया है तुम्हारे हर उस एहसास को, जो 'तुम' हो, जिसे मैं 'जी' सकता हूँ, पर तुमसे ले नहीं सकता... बिस्तर में मिली तुम्हारी बिंदी, खुद पे तुम्हारे हाथों का एहसास, मुझ ही से शर्माकर तुम्हारा, मुझ ही में सिमट जाना, "ओहफ़ो ! तुम्हें तो हाथ धोने भी नहीं आते !" छोटी सी बात पे तुम्हारा ख़ूब हंसना, पिज़्ज़ा के प्लैन पे तुम्हारी आँखों कि चमक, किसी कमरे से आती तुम्हारी हँसी कि खनक, तुम्हारा मुझ पे बेपनाह नाज़ होना, सोने से पहले तुम्हारा मुझसे लिपट जाना ! चोर हूँ मैं, एक सीपी छुपा रखी है मैंने, जिसमें संभाले हैं तुम्हारे सारे लम्हे | जब भी देखता हूँ तो वह रुपहला मोती, थोड़ा और बड़ा लगता है
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
एक सर्द हवा निग़ाहें जहाँ की जो छू जाएँ तुम्हें कभी, ख़रोंच के मेरा ज़हन एक सर्द हवा गुज़रती है, इस रूह के सौ टुकड़े फिर जोड़ता हूँ रात भर, हर सांस से हर आह को तोड़ता हूँ रात भर, कि कल ये जहाँ फिर मुझे कुरेदेगा , कि कल फिर कोई तुम्हें मुस्कुरा कर देखेगा !
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
बस...एक जनम आग़ाज़ हो तेरी ख़ुशबू से, तेरी ख़ुशबू में ही बसर करूँ, दिन कुछ ऐसे गुज़रे मेरा... फ़ुरसत ना मिले बाहों से कभी, सुकूँ ना मिले सांसों को कभी, सिरहन में रहूँ तेरे छूने की , वक़्त कुछ यूँ ठहरे मेरा... लिबास बनके तेरा, सिलवटों में बनूँ-बिखरुं, वजूद-बेवजूद ढूँढूँ अपने मायने, बन के कोहरा पाक़-मख़मली, बह लूँ, टहलूं सांसों में तेरी, बन के फिज़ा शफ्फ़ाक़ बर्फ़ीली, तुम्हारी आँखों में भर जाऊँ, पलकें तेरी, गिरती-उठतीं, यूँ सहलाएं चेहरे को मेरे, हर सितारा ख्वाइशों का यूँ टूटे मेरा ... चल, ले-चल ना अपने साथ महरम, कर दे ना मुझे मुझ-से ही जुदा, मिटा दे ना यह एहसास बदन का, मिटा दे ना यह लफज़ों का शोर, कर दे ना रूहों को रिहा, बस...एक जनम, बस एक जनम तेरी रूह में गुज़ार लूँ जानम, हर ज़र्रे में यूँ नूर बिखरे तेरा…
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
उस जहाँ में मैं भी रहता हूँ 'नूरी', जहाँ अक़्सर तुम्हें खोये देखा है ... रोज़ शाम जब नन्ही-नन्ही, झूठ-मूठ की बातों में, ज़िक्र करती हो मेरा ... जी उठता हूँ मैं ! यह जानके...की ना होके भी, मैं एक हिस्सा था तेरे लम्हों का ! जैसे मेरे हर लम्हें में महकता है एहसास तेरा, वैसे... कभी शम्मा-सा रौशन, कभी फ़लक-सा बेपनाह, कभी एक झोंके-सा अनदेखा, जब झलक जाता हूँ तेरे किस्सों में ... तो जी उठता हूँ मैं ! कि आज मैं भी एक किरदार हूँ तेरी कहानियों का 'नूरी' ! जी उठता हूँ मैं , कि तुझमें हूँ मैं...कहीं ! उस जहाँ में मैं भी रहता हूँ 'नूरी', जहाँ अक़्सर तुम्हें खोये देखा है
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
ख़्वाब हैं कुछ आँखों में कल के, कुछ इस पल की आवारगी है, सांसें हैं कुछ बेफ़िकर सी, कुछ जूनून-ओ-संजीदगी है... हम हैं, तुम हो...और ज़िन्दगी है !
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
हर सांस में एक शोर है उम्र के गुज़रने का, हर सांस में लफ़ज़ों का एक कारवां उमड़ता है, एक सांस तेरे नाम कि ज़रा ठहरती है लबों पे, यह दिल उसी सांस को ... उम्र कर लेता है !
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
जो प्यार बसा अपनी आँखों में, वो हो किसी की आँखों में, जैसे अपना है दिल पिघला, पिघले कोई जज़्बातों में, जैसे कोई अपनी मंज़िल है, हम भी किसी की मंज़िल हों, जैसे काटे ये साल अकेले, अब उम्र कटे मुलाक़ातों में
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
दोस्त क़रीब नहीं अपने, शायद इसी लिये दोस्ती क़रीबी है, ये फ़ासले ना हों तो ख़ुदा को भी 'ख़ुदा' का खिताब ना मिले... ख़ुदा भी यार हो अपना ग़र यार को ख़ुदा कह दें !
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
ख़ूब चला मैं आज सुबह...की सहर आ जाये, ख़ूब चला था रात भर की शब न ढले... सहर आयी भी और रात भी ढल गयी , शायद इसी दास्ताँ को क़िस्मत क़रार किया है सयानों ने
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
कुछ लम्हे तस्वीरों के लिए नहीं होते, कुछ लम्हे अफसानों के लिए नहीं होते, कुछ लम्हे बस... ...जी लेने के लिए होते हैं !
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
क़िस्से कुछ अफ़सानों के, यूँ आग जलाये बैठे हैं, मैं रौशन हूँ जिन यादों में, बस....उन्हें सुलगाये बैठे हैं...!
Satbir Singh (Waqt Theharta Hai (Poetry Book 1) (Hindi Edition))
Thoda Rukh sakti ho? "Waqt nahi hai" "Hamse udhar lelo" "Chuka nahi paungi" "Fir kabhi chuka dena " "Kya hum phir milenge??" "Haan hum phir milenge' "Tab sab kuch kitna naya hoga na !" "Hum purane hi rahenge "Kyu" "Purana sawal jo puchna hoga " Konsa "Thoda Rukh sakti ho kya??
Aariv Pandey
Teri in aankhon mein Teri in aankhon mein kuch alag baat hai, Ek an-kahi daastan, kuch anjaane jazbaat hai, Aaj dil mein tera pyaar, haaton mein tera haat hai, Tham jaaye ab ye waqt, bas itni si darkaar hai, In aakhon mein teri chehra, baaton mein teri hi baat hai, Kat jati hai yaadon k sahare, ab ye lambi kali raat hai, Ek aag si lagti hai, bekaraar ho jate jazbaat hai, Kar deta hai agar koi, tanhaaiyon mein teri baat hai, In saanso mein teri hi mehak, aakhon mein tera hi aks hai, Tuje soch soch kat jate, mere ab din aur raat hai, Teri in aankhon mein kuch alag baat hai, Ek an-kahi daastan, kuch anjaane jazbaat hai,
Ratish Edwards
Na hum kisi k, na koi hamara, Kon chale saath, kon bane Sahara, Beet Gaya vo waqt, kal jo tha hamara, Reh Gaya bas dard, aur ek zakhm gehra, Aksar yaad aata, uska woh chehra, Kuch bhooli baatein, aur hasna woh hamara, Jate jate aksar, uska woh ruk jana, Aur ye kehna, kaash thaher jaye ye waqt hamara, Jabhi yaad karta hu mein, apna woh waqt sunhera, Saath chali aati hai, uski yaadon ka pehra, Ab aur kya bataun, khul na jaye ye raaz hamara, Varna mazaak udayegi ye duniya, Tuta dil hai bechara, Na hum kisi k, na koi hamara, Kon chale saath, kon bane Sahara
Ratish Edwards
Apni zindgi mein kari galti kam nahi, Jiske liye khuda se kari binti kam nahi, Jiske liye humne bitaye jaagte raate kam nahi, Uske liye hamare ishq mein dum nahi, Aate aate uski yaad aati kam nahi, Kisi dawa se hota ye dard kam nahi, Waqt bewaqt hoti aksar Aankhen nam Kam nahi, Jab jab aati uski yaad, aur hum rehte hum nahi, Apni zindgi mein kari galti kam nahi, Jiske liye khuda se kari binti kam nahi
Ratish Edwards