Vaani Quotes

We've searched our database for all the quotes and captions related to Vaani. Here they are! All 50 of them:

Surrendering to Life does not mean inaction. It means trusting Life’s cyclical process and going with the flow. It means making your best efforts every single day and remaining non-frustrated even when you don’t get the results that you expect.
AVIS Viswanathan
योगी कोई अन्य नहीं, यह जीव ही योगी है और यह शरीर गुफा या गुदड़ी है तथा उसमें मूल सजीवन यानी आत्म-स्वरूप ज्योति जल रही है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
सबसे अफसोस की बात तो यह है कि मिट्टी के देवी-देवताओं को जीवों की बलि दे रहे हो, क्या तुम मनुष्य होकर इतने भ्रष्ट व क्रूर हो गए हो? अगर तुम्हारा मिट्टी व पत्थर का देव इतना ही सच्चा और परमशक्तिशाली है तो फिर खेत में चरते हुए पशुओं को क्यों नहीं खा लेता है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
मोक्ष पाना ही है तो पानी और मछली की तरह लगातार आत्म-स्वरूप अगम, अगोचर और अजन्मे प्रभु को मन में बसाना आवश्यक है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
सती जरन को नीकसी, चित धरि एक विवेक। तन मन सौंपा पीव को, अन्तर रही न रेख।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कबीर सीप समुद्र की, रटै पियास पियास। और बूंद को न गहे, स्वाति बूंद की आस।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कबीर सीप समुद्र की, खारा जल नहिं लेय। पानी पीवै स्वाति का, सोभा सागर देय।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
ऊंची जाति पपीहरा, पिये न नीचा नीर। कै सुरपति को जांचई, कै दुःख सहै सरीर।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
पड़ा पपीहा सुरसरी, लागा बधिक का बान। मुख मूंदै सुरति गगन में, निकसि गये यूं प्रान।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
चित चेतन ताजी करै, लौ की करै लगाम। शबद गुरु का ताजना, पहुंचै संत सुठाम।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
काल्पनिक राम की आस में बैठे, क्यों जीवन यूं ही गंवा रहे हो। अपने आत्म-स्वरूप अर्थात् स्वयं को पहचानो। कबीर कहते हैं कि मैं तो कह-कहकर थक गया कि साक्षात रूप में कोई राम नहीं है, लेकिन मेरे गुरु रामानंद भी कहां माने। वह तो काल्पनिक राम के रस में मस्त रहे और उन्हें मोक्ष नहीं मिला। कहने का भाव है कि आत्म-स्वरूप ही सबसे ऊपर है और इसी की पहचान करने में मुक्ति है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
उस मन को पहचानो, जो तुम्हारा रिश्ता संसार से जोड़ता है। जरा सोचो, तन के छूटने के बाद अर्थात् मौत के बाद मन कहां जाकर विलीन होगा।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कबीर कहते हैं कि एक मन ही प्रत्येक शरीर धारी के भीतर विद्यमान है और सभी जीव बस उसी के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, लेकिन उसके भेद को जान नहीं पा रहे हैं।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
इसमें शक नहीं कि दशरथ पुत्र राम अच्छे गुणों वाले थे, लेकिन क्या यह सोचकर अपने आत्म-स्वरूप चैतन्य प्रभु को छोड़कर काल्पनिक राम में मन लगाने से मुक्ति मिलना संभव है?
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
माइ मसानि सिढि सितला, भैरु भूत हनुमंत। साहिब सों न्यार रहै, जो इनको पूजन्त।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
एक कनक अरु कामिनी, दुरगम घाटी दोय।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
नारि पराई आपनी, भोगै नरकै जाय। आग आग सब एकसी, हाथ दिये जरि जाय।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
नारि निरखि न देखिये, निरखि न कीजै दौर। देखत ही ते विष चढ़ै, मन आवै कछु और।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
नारि पुरुष को इस्तरी, पुरुष नारि का पूत। याही ज्ञान विचारि के, छाड़ि चला अवधूत।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
मन रूपी अधिकारी ने जीव को माया जाल में उलझाकर रख दिया है। कर्म फंदे की बांसुरी की तान सुनाकर सारे संसार को ही मुग्ध कर दिया है। सभी अपने आत्म-स्वरूप से अनभिज्ञ हो गए हैं।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
पर नारी का राचना, ज्यूं लहसुन की खान। कोने बैठे खाइये, परगट होय निदान।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
नारी नरक न जानिये, सब संतन की खान। जामें हरिजन ऊपजे, सोई रतन की खान।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
To be sure, there is no method, no single way, to anchor in Faith and employ Patience. Letting go, trusting the process of Life and living with Faith and Patience, is the way. Living through our crippling bankruptcy for over 12 years now, Vaani and I have realized that Faith does not always solve our problems immediately. But having Faith in the process of Life – that what goes around, comes around; that what goes up will come down some day, only to go back up another day – certainly helps us to cope with our problems better. Keeping the Faith also teaches us Patience. Unless you embrace these twin philosophies, and live practising them together, you will not see the miracles in your everyday Life.
AVIS Viswanathan
The truth is that we humans cannot fight Life’s design. For instance, when someone’s time is up, they just have to go. When this understanding is complete, there will be a realization that carrying on grieving is futile. That’s when you exercise the choice to be non-suffering. However, being non-suffering does not mean that there will be no pain. You cannot negotiate with pain. You have to simply accept it. But when you are non-suffering your ability to accept pain and deal with it improves significantly.
AVIS Viswanathan
ब्रह्म बड़ा कि जहां से आया। बेद बड़ा कि जिन्ह उपजाया।।2।। ई मन बड़ा कि जेहि मन माना। राम बड़ा कि रामहि जाना।।3।। भ्रमि-भ्रमि कबिरा फिर उदास। तीर्थ बड़ा कि तीर्थ का दास।।4।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
आसमान की बातें करते हैं, लेकिन स्वयं का जीवन नरक बना हुआ है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
मन के इस अधिकार भाव को मिटा दो अर्थात् मन का कहना न मानो, तभी तुम भवबंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हो।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
मेरूदण्ड पर साधकों ने अपना ध्यान लगाया और मूलाधार चक्र से ऊपर की तरफ बढ़ते हुए अष्ट कंवल यानी आठवें सुरति कंवल में प्रवेशकर उजाला भर दिया। सुरति कंवल में उजाला होते ही प्राण वायु ऊपर आ गई। वहां नौ नाड़ियां तथा प्राणादि पांच सहेलियां भी पहुंच गईं। बहत्तर कोठों की वायु आकर उसी में विलीन हो गईं और अनहद बाजा लयबद्ध धुन में बजने लगा। ऐसे आनंदमय वातावरण में साधक आनंदित होकर खेलने लगा।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कबीर कहते हैं कि हे शिवशंकर! तुम्हारी काशी कैसी हो गई है। आज भी सोच लो। चोवा, चंदन, अगर, पान तुम पर चढ़ाया जाता है। घर-घर स्मृति और पुराण भी पढ़े जाते हैं और लोग तुम्हारा गुणगान करते हैं, छप्पन प्रकार के भोग लगाए जाते हैं और इस काशी नगरी में चारों तरफ तुम्हारे नाम की जय ध्वनि होती रहती है। काशी में तुम्हारे भक्तों की भीड़ है, तभी तो हे शिवशंकर! मैं निःसंकोच भाव से पूछता हूं। मैं तुम्हारे सामने एक अबोध बच्चा हूं और मेरा ज्ञान बहुत ही सीमित है, लेकिन तुम्हारा ज्ञान तो असीमित है और तुम ज्ञान के भंडार हो, तुम्हें क्या समझाना। मेरे मन में जो संशय उत्पन्न हुआ है उसका निवारण करो।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
काशी की महिमा में पड़कर मनुष्य यहां तनाव मुक्त हो जाता है कि श्वास निकलने के बाद तो मुक्ति निश्चित ही है, लेकिन यदि जीव को मोक्ष नहीं मिला तो कसूरवार तुम ही होगे। हे साहेब! वह कसूरवार नहीं होगा। भगवान शिव हर्षित होकर बोले कि जहां हम हैं वहां दूसरा कोई नहीं है अर्थात् काशी में शिव हैं और काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है, यहां यमराज नहीं आ सकता। कबीर कहते हैं कि जो सच है, वही मैं कह रहा हूं। जो सामने है, वही सच है, झूठ नहीं है। कर्म प्रधान है, कर्मफल सबको ही भोगना पड़ता है। कर्मफल से भला कोई मुक्त कैसे हो सकता है। काशी में मरो या कहीं भी मरो, कर्मफल तो साथ ही रहेगा। ऐसा कभी मत सोचो कि पाप कर्म कर काशी में जाकर मरोगे तो सद्गति हो जाएगी और यह सोचकर भी बुरे कर्म न करो कि काशी में जाकर मर जाएंगे तो सारे पापों से छुटकारा मिल जाएगा। ऐसा नहीं है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
हे प्राणी! न तो तेरा आदि है और न ही तेरा कोई अंत है। न तो तेरी जड़ है, न तो पत्ते हैं और न ही डाल है अर्थात् तेरा कोई आकार नहीं है और कारण भी नहीं है। हे जीव! तू बिना आकार का है। तुम्हारे अंतर में न तो दिन है, न रात है, न पानी है, न हवा है और न ही मूल यानी कोई बीज है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
जीव के इस कर्म रूपी पेड़ में इच्छा और वासना का एक फूल खिला है और यही एक फूल सारे संसार में खिला हुआ है अर्थात् प्रत्येक जीव में इसी एक फूल का विस्तार है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
जैसे कृषक शीतल यानी बारिश के बाद खेतों में बीज डालते हैं वैसे ही यह जीव भी सातों विषयों के बीज बोता है अर्थात् पांचों इंद्रियों और मन, अहंकार से जीवन का व्यापार करता है। जीवन एक व्यापार ही तो है। फिर उसी के अनुसार उसे कर्म फल मिलते रहते हैं। वह किसान की तरह ही नित्त गुड़ाई करता है, सींचता है और नित नये पत्ते व डालें निकलती रहती हैं। गुड़ाई करना और सींचना ये सब जीव के कर्म ही हैं।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
जो भक्तजन हैं, उनका ध्यान उस फूल पर नहीं जाता है, वे तो इस फूल को छोड़कर बाहर ईश्वर की खोज करते हैं, जिससे वे दुःखी रहते हैं और उसी फूल यानी ईश्वर की खोज में भटकते रहते हैं। भला जो ईश्वर अंदर बैठा है, वह बाहर मिलने वाला है।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कबीर कहते हैं कि लोभ-मोह के दो स्तंभों पर यह हिण्डोला टिका हुआ है और सृष्टि के सारे जीव इस पर बैठकर झूल रहे हैं, एक भी जीव स्थिर नहीं है। जो चालाक-चतुर हैं, अपनी चतुराई में झूल रहे हैं, राजा अपने राजमद के अभिमान में झूल रहा है और शेषनाग भी इसी झूले में सवार हैं। चांद, सूर्य भी झूल रहे हैं, वे भी इस भ्रम-हिण्डोले से वंचित नहीं हैं।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
यादव श्रेष्ठ कृष्ण से कहता है कि हे यादव पति! इस हिण्डोले को स्थिर कर दो ताकि मैं इस पर से उतर जाऊं। हे गोपाल! मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं तुम्हारी शरण में आना चाहता हूं।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
देह धरे हरि झूलहीं। ठाढ़े देखहिं हंस कबीर।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कोटि कल्प युग बीतिया। अजहुं न माने हारि।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
सीप नहीं सागर नहीं, स्वाति बूंद भी नांहि। कबीर मोती नीपजै, सुन सरवर घट मांहि।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
एक ही बार परखिए, ना वा बारम्बार। बालू तौहू किरकिरी, जो छानैं सौ बार।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
ज्ञानी जन हैं जौहरी, करमी सकल मजूर। देह भार को टोकरा, लिए सीस भरपूर।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
चंदन गया विदेसरे, सब कोय कहै पलास। ज्यौं ज्यौं चूल्है झोंकिया, त्यौं त्यौं अधिक सुवास।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
दीप कू झोला पवन है, नर को झोला नारि। ज्ञानी झोला गर्व है, कहैं कबीर पुकारि।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
राजपाट धन पायके, क्यों करता अभिमान। पड़ोसी की जो दशा, भई सो अपनी जान।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कागा काको धन हरै, कोयल काको देत। मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनो करि लेत।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
कामी का गुरु कामिनी, लोभी का गुरु दाम। कबीर का गुरु सन्त है, संतन का गुरु राम।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
शीतल शब्द उचाटिये, अहं आनिये नाहिं। तेरा प्रीतम तुझहि में, दुसमन भी तुम माहिं।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
खुलि खेलो संसार में, बांधि न सक्कै कोय। घाट जगाती क्या करै, सिर पर पोट न होय।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
दीपक सुन्दर देखि करि, जरि जरि मरे पतंग। बढ़ी लहर जो विषय की, जरत न मारै अंग।।
Anand Kulshresth (Kabir Bijak: Sampoorna Kabir Vaani (Hindi))
Clearly, Life never appears to be easy. And everyone feels beaten and emotionally broken at some point or the other when trying to cope with the upheavals of everyday living. To last each tough day, and to wake up afresh to take on the next tough one, is a great act of heroism. So be kind to yourself. Be gentle with yourself. And celebrate yourself.
Vaani Anand and AVIS Viswanathan