“
Beauty doesn't need ornaments. Softness can't bear the weight of ornaments.
”
”
Munshi Premchand
“
जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।
”
”
Munshi Premchand (बड़े घर की बेटी)
“
लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे? क
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।
”
”
Munshi Premchand (गोदान)
“
वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।
”
”
Munshi Premchand
“
स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
इतना पुराना मित्रता-रूपी वृक्ष सत्य का एक झोंका भी न सह सका। सचमुच वह बालू की ही ज़मीन पर खड़ा था।
”
”
Munshi Premchand (पंच-परमेश्वर)
“
हमें कोई दोनों जून खाने को दे, तो हम आठों पहर भगवान का जाप ही करते रहें।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
”
”
Munshi Premchand (कर्मभूमि)
“
मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है, ऊपरी
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है। ध
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
जाने। उसने सब घी मांस में डाल दिया। लालबिहारी
”
”
Munshi Premchand (बड़े घर की बेटी)
“
गुड़ घर के अंदर मटकों में बंद रखा हो, तो कितना ही मूसलाधार पानी बरसे, कोई हानि नहीं होती; पर जिस वक़्त वह धूप में सूखने के लिए बाहर फैलाया गया हो, उस वक़्त तो पानी का एक छींटा भी उसका सर्वनाश कर देगा। सिलिया
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
स्त्री गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मैके की निंदा उससे नहीं सही जाती। आनन्दी
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar 2 (मानसरोवर 2, Hindi): प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ (Hindi Edition))
“
जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
Death won’t come because you called him.
”
”
Munshi Premchand (Nirmala (Best of India Classics))
“
धर्म और अधर्म, सेवा और परमार्थ के झमेलों में पड़कर मैंने बहुत ठोकरें खायीं। मैंने देख लिया कि दुनिया दुनियादारों के लिए है, जो अवसर और काल देखकर काम करते हैं। सिद्धान्तवादियों के लिए यह अनुकूल स्थान नहीं है।
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Vol. 2; Short Stories by Premchand)
“
The bird hovering over a tiny seed eventually fell upon the seed. How will his life end, whether in a cage or under the butcher’s knife – who knows what will happen?
”
”
Munshi Premchand (Nirmala (Best of India Classics))
“
उदासों के लिए स्वर्ग भी उदास है।
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पंच के दिल में खुदा बसता है।
”
”
Munshi Premchand (पंच-परमेश्वर)
“
सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, सुन्दरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही किसान को अपने खेतों को लहराते हुए देखकर होता है।
”
”
Munshi Premchand (Mukti Marg)
“
न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं। लेटे
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
रोने के लिए हम एकांत ढूंढते हैं, हसंने के लिए अनेकांत।
”
”
Munshi Premchand (कर्मभूमि)
“
लज्जा ने सदैव वीरों को परास्त किया है।
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
केवल कौशल से धन नहीं मिलता। इसके लिए भी त्याग और तपस्या करनी पड़ती है। शायद इतनी साधना में ईश्वर भी मिल जाय। हमारी सारी आत्मिक और बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों के सामंजस्य का नाम धन है।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
हम जिनके लिए त्याग करते हैं उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
शराब अगर लोगो को पागल कर देती है, तो क्या उसे क्या पानी से कम समझा जाए , जो प्यास बुझाता है , जिलाता है , और शांत करता है ?
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।
”
”
Munshi Premchand (पंच-परमेश्वर)
“
उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना ख़ज़ाना निकाल कर गिनते हैं और ख़ुश होकर फिर रख लेते हैं।
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
आशा तो बड़ी चीज़ है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
जीवन क्या, एक दीर्घ तपस्या थी, जिसका मुख्य उद्देश्य कर्तव्य का पालन था?
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
द्वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फँसाता है। छोटी मछलियाँ या तो उसमें फँसती ही नहीं या तुरंत निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीड़ा की वस्तु है, भय की नहीं।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
वही नेकी अगर करनेवालों के दिल में रहे, तो नेकी है, बाहर निकल आये तो बदी है।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ जाते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है।
”
”
Munshi Premchand (पंच-परमेश्वर)
“
पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम से वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा। वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, इन्हीं आधारों पर यह सृष्टि थमी हुई है और यह स्त्रियों के गुण हैं।
”
”
Munshi Premchand (कर्मभूमि)
“
के द्वेषी और शत्रु चारों ओर होते हैं। लोग जलती हुई आग को पानी से बुझाते हैं, पर राख माथे पर लगाई जाती है। आप
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
भीतर की शांति बाहर सौजन्य बन गई थी।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
आत्माभिमान को भी कर्त्तव्य के सामने सिर झुकाना पड़ेगा।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज़ है। उसको पेट के अन्दर डाल दिया जाए, बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है। हामिद
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
मुहरा आप कयामत तक न छोड़ें, तो क्या चाल ही न होगी? फ़रज़ी पिटते देखा तो धाँधली करने लगे।
”
”
Munshi Premchand (शतरंज के खिलाड़ी [Shatranj ke Khiladi])
“
अनाथों का क्रोध पटाखे की आवाज़ है, जिससे बच्चे डर जाते हैं और असर कुछ नहीं होता। अदालत
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
का उपला जब जलकर ख़ाक हो जाता है, तब साधु-संत उसे माथे पर चढ़ाते हैं। पत्थर का ढेला आग में जलकर आग से अधिक तीखा और मारक
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
प्राणी का कोई मूलय नही, केवल देहज का मूल्य है।
”
”
Munshi Premchand (निर्मला)
“
अज्ञान में सफाई है और हिम्मत है उसके दिल और जबान में पर्दा नहीं होता, न कथनी और करनी में विरोध। क्या यह अफसोस की बात नहीं है कि ज्ञान अज्ञान के आगे सिर झुकाए?
”
”
Munshi Premchand (गुप्त धन)
“
जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है ।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत,
हम अपने गम से कब खाली?
चलो, बस हो चुका मिलना
न तुम खाली न हम खाली ।
”
”
Munshi Premchand (प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां)
“
देह के भीतर इसीलिए आत्मा रक्खी गई है कि देह उसकी रक्षा करे। इसलिए नहीं कि उसका सर्वनाश कर दे।
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं उसकी दौलत का सम्मान है
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
झुनिया को अब लल्लू की स्मृति लल्लू से भी कहीं प्रिय थी।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
A worshipper of science says a subtle radiance leaves the body. Devotees of the science of imagination say the vital essence may emerge from the eyes, from the mouth, from the top of the head. Let someone ask them, when a wave is being absorbed, is there a spark? When a sound is vanishing, does it become incarnated? This is merely a rest during that endless journey, not where the journey ends, but where it begins anew.
”
”
Munshi Premchand (GABAN)
“
अज्ञान की भाँति ज्ञान भी सरल, निष्कपट और सुनहले स्वप्न देखनेवाला होता है। मानवता में उसका विश्वास इतना दृढ़, इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। यह वह भूल जाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों की निरीहता का जवाब सदैव पंजे और दाँतों से दिया है। वह अपना एक आदर्श-संसार बनाकर उसको आदर्श मानवता से आबाद करता है और उसी में मग्न रहता है। यथार्थता
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
यहाँ तक कि मिर्ज़ा की बेगम साहिबा को इससे इतना द्वेष था कि अवसर खोज-खोजकर पति को लताड़ती थीं। पर उन्हें इसका अवसर मुश्किल से मिलता था। वह सोती ही रहती थीं, तब तक उधर बाज़ी बिछ जाती थी। और
”
”
Munshi Premchand (शतरंज के खिलाड़ी [Shatranj ke Khiladi])
“
मनुष्य के मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति का नहीं। प्रेम, चिंता, हानि यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं, पर यह हवा के हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आँधी है। मुंशीजी
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
वही तलवार, जो केले को नहीं काट सकती, सान पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव-जीवन में लाग बड़े महत्त्व की वस्तु है। जिसमें लाग है, वह बूढ़ा भी हो तो जवान है। जिसमें लाग नहीं, गैरत नहीं, वह जवान भी मृतक है। सुजान
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
स्वराज्य चित्त की वृत्तिमात्रा है। ज्योंही पराधीनता का आतंक दिल से निकल गया, आपको स्वराज्य मिल गया। भय ही पराध्ीनता है निर्भयता ही स्वराज्य है। व्यवस्था और संगठन तो गौण है।
”
”
Munshi Premchand (21 अनमोल कहानियां)
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
वह निर्भीक था, स्पष्टवादी था, साहसी था, स्वदेश-प्रेमी था, निःस्वार्थ था, कर्तव्यपरायण था। जेल जाने के लिए इन्हीं गुणों की जरूरत है।
”
”
Munshi Premchand (21 अनमोल कहानियां)
“
क्रूरता, कठोरता और पैशाचिकता अपना विकरालतम
”
”
Munshi Premchand (परीक्षा)
“
सूर्य सिर पर आ गया था। उसके तेज़ से अभिभूत होकर वृक्षों ने अपना पसार समेट लिया था।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
करें क्या? यों उन्होने फलदान तो रख लिया है पर मुझसे कह दिया है कि लड़का स्वभाव का
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 3 (Hindi))
“
लूट की कमाई को हराम समज्जने के लिए शरा का पाबंद होने की जरुरत नहीं है
”
”
Munshi Premchand (गोदान)
“
और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का गुप्तदान कर रही थी।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
चिकनी चांद आसपास के सफेद बालों के बीच में वारनिश की हुई लकड़ी की भांति चमक रही थी।
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
के राव देवीचंद की इकलौती कन्या थी। राव पुराने विचारों के रईस थे। कृष्ण की
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। बोली–अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी
”
”
Munshi Premchand (गोदान)
“
उन दोनों में वह प्रेम था, जो धन की तृण के बराबर परवाह नहीं करता।
”
”
Munshi Premchand (निर्मला)
“
बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो, तो हमे उसकी प्रभुता मानने में कोई आपत्ति नहीं।
”
”
Munshi Premchand (गोदान)
“
देश छोड़कर वहाँ नहीं जा सकता। अपनी मिट्टी गंगा जी को ही
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 6 (Hindi))
Munshi Premchand (प्रेमाश्रम [Premashram])
Munshi Premchand (Prema (Hindi))
“
सभी मनस्वी प्राणियों में यह भावना छिपी रहती है और प्रकाश पाकर चमक उठती है।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
एक अनु-पुष्य की भाँति धूप में खिली हुई, दूसरी ग़मले के फूल की भाँति धूप में मुरझाकी और निर्जीव। मालती
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
इसी बात पर सास-बहू में तकरार हो गई, फिर शाखें फूट निकलीं। बात कहॉ से कहॉ जा पहुँची, गड़े हुए मुर्दे उखाड़े गए। अन्योक्तियों की बारी आई, व्यंग्य का दौर शुरु हुआ और मौनालंकार पर समाप्त हो गया।
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 1 (Hindi))
“
और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी। "यह चिमटा कहाँ था?" "मैंने मोल लिया है।" "कै पैसे में?" "तीन पैसे दिये।" अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुई, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा! बाेली, "सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?" हामिद ने अपराधी-भाव से कहा, "तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया।" बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिख़ेर देता है। यह मूक स्नेह था, ख़ूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सदभाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा! इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
लज्जा ने सदैव वीरों को परास्त किया है। जो काल से भी नहीं डरते, वे भी लज्जा के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं करते। आग में झुंक जाना, तलवार के सामने खड़े हो जाना, इसकी अपेक्षा कहीं सहज है। लाज की रक्षा ही के लिए बड़े-बडे राज्य मिट गए हैं, रक्त की नदियां बह गई हैं, प्राणों की होली खेल डाली गई है।
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं! उन्हें क्या ख़बर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना ख़ज़ाना निकाल कर गिनते हैं और ख़ुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिख़ेर देता है। यह मूक स्नेह था, ख़ूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सदभाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा! इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गदगद हो गया।
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
मैं अपनी स्वाधीनता न खोना चाहूँगा, तुम अपनी स्वतन्त्रता न खोना चाहोगी। तुम्हारे पास तुम्हारे आशिक आयेंगे, मुझे जलन होगी। मेरे पास मेरी प्रेमिकाएँ आयेंगी, तुम्हें जलन होगी। मनमुटाव होगा, फिर वैमनस्य होगा और तुम मुझे घर से निकाल दोगी। घर तुम्हारा है ही! मुझे बुरा लगेगा ही, फिर यह मैत्री कैसे निभेगी?
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 2 (Hindi))
“
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है, ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है। तुम स्वयं विद्वान् हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरज़ वाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज़ को दाँव पर पाना ज़रा कठिन है। इन बातों को गाँठ में बाँध लो। यह मेरी जन्म भर की कमाई है।
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
वैवाहिक जीवन के प्रभात में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्याहन का प्रखर ताप आता है, क्षण-क्षण पर बगूले उठते हैं, और पृथ्वी काँपने लगती है। लालसा का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी है। उसके बाद विश्राममय सन्ध्या आती है, शीतल और शान्त, जब हम थके हुए पथिकों की भाँति दिन-भर की यात्रा का वृत्तान्त कहते और सुनते हैं तटस्थ भाव से, मानो हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे हैं जहाँ नीचे का जनरूरव हम तक नहीं पहुँचता। धनिया
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
दुःखी हृदय दुखती हुई आंख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।
”
”
Munshi Premchand (निर्मला)
“
दबा हुआ पुरुषार्थ ही स्त्रीत्व है।
”
”
Munshi Premchand (कर्मभूमि)
“
बुरे विचार भी ईश्वर की प्ररेणा ही से आते होंगे? प्रमीला तत्परता के साथ बोली- ईश्वर आनन्द-स्वरूप हैं। दीपक से कभी अन्धकार नहीं निकल सकता।
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 2 (Hindi))
“
जिस प्रकार विरले ही दुराचारियों को अपने कुकर्मों का दंड मिलता है, उसी प्रकार सज्जनता का दंड पाना अनिवार्य है।
”
”
Munshi Premchand (Sevasadan (Hindi))
“
Good looks can stand anything but insult.
”
”
Munshi Premchand (Godaan)
“
जब किसी कौम की औरतों में गैरत नहीं रहती तो वह कौम मुरदा हो जाती है।
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 3 (Hindi))
“
यंत्रणा में सहानुभूति पैदा करने की शक्ति होती है।
”
”
Munshi Premchand (Mansarovar - Part 8 (Hindi))
“
नौका पर बैठे हुए जल विहार करते समय हम जिन चट्टानों को घातक समझते हैं, और चाहते हैं की कोई इन्हें खोदकर फेंक देता, उन्ही से नौका टूट जाने पर हम चिमट जाते हैं ।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godaan])
“
छोटे विचार पवित्र भावों के सामने दब जाते हैं।
”
”
Munshi Premchand (Sevasadan)
“
A person whose actions go against his principles is hardly an idealist.
”
”
Munshi Premchand (Godaan)
“
कितना सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था! लाख़ों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं। एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाख़ों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ, और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य है, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती हैं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।
”
”
Munshi Premchand (मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ)
“
रूदन में कितना उल्लास, कितनी शांति, कितना बल है। जो कभी एकांत में बैठकर, किसी की स्मृति में, किसी के वियोग में, सिसक-सिसक और बिलखबिलख नहीं रोया, वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है, जिस पर सैकड़ों हंसियां न्योछावर हैं। उस मीठी वेदना का आनंद उन्हीं से पूछो, जिन्होंने यह सौभाग्य प्राप्त किया
”
”
Munshi Premchand (गबन)
“
को नाटक का रूप देकर उसे शिष्ट मनोरंजन का साधन बना दिया था। इस अवसर पर उनके यार-दोस्त, हाकिम-हुक्काम सभी निमंत्रित होते थे। और दो-तीन दिन इलाक़े में बड़ी चहल-पहल रहती थी। राय साहब का परिवार बहुत विशाल था। कोई डेढ़ सौ सरदार एक साथ भोजन करते थे। कई चचा थे, दरजनों चचेरे भाई, कई सगे भाई, बीसियों नाते के भाई। एक चचा साहब राधा के अनन्य उपासक थे और बराबर वृन्दाबन में रहते थे। भक्ति-रस के कितने ही कविता रच डाले थे और समय-समय पर उन्हें छपवाकर दोस्तों की भेंट कर देते थे। एक दूसरे चचा थे, जो राम के परमभक्त थे और फ़ारसी-भाषा में रामायण का अनुवाद कर रहे थे। रियासत से सबके वसीके बँधे हुए थे। किसी को कोई काम करने की ज़रूरत न थी।
”
”
Munshi Premchand (गोदान [Godan])
“
जालपा ने कमरे में आकर अपनी संदूकची खोली और उसमें से वह कांच का चन्द्रहार निकाला जिसे एक दिन पहनकर उसने अपने को धन्य माना था। पर अब इस नए चन्द्रहार के सामने उसकी चमक उसी भाँति मंद पड़ गयी थी, जैसे इस निर्मल चंद्रज्योति के सामने तारों का आलोक। उसने उस नकली हार को तोड़ डाला और उसके दानों को नीचे गली में फेंक दिया, उसी भाँति जैसे पूजन समाप्त हो जाने के बाद कोई उपासक मिट्टी की मूर्तियों को जल में विसर्जित कर देता है।
”
”
Munshi Premchand (Gaban)
“
मगर कोई आदमी अपने बुरे आचरण पर लज्जित होकर भी सत्य का उदघाटन करे, छल और कपट का आवरण हटा दे, तो वह सज्जन है, उसके साहस की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। मगर शर्त यही है कि वह अपनी गोष्ठी के साथ किए का फल भोगने को तैयार रहे। हंसता-खेलता फांसी पर चढ़जाए तो वह सच्चा वीर है, लेकिन अपने प्राणों की रक्षा के लिए स्वार्थ के नीच विचार से, दंड की कठोरता से भयभीत होकर अपने साथियों से दगा करे, आस्तीन का सांप बन जाए तो वह कायर है, पतित है, बेहया है।
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Munshi Premchand (गबन)
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मेरे दरजे में आओगे, तो दाँतों पसीना आ जाएगा, जब अलजबरा और ज्यॉमेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे, और इंग्लिस्तान का इतिहास पढ़ना पड़ेगा। बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं। आठ-आठ हेनरी ही गुज़रे हैं। कौन-सा कांड किस हेनरी के समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो ? हेनरी सातवें की जगह हेनरी आठवाँ लिखा और सब नम्बर गायब ! सफाचट। सिफर भी न मिलेगा, सिफर भी ! हो किस खयाल में? दरजनों तो जेम्स हुए हैं, दरजनों विलियम, कोड़ियों चार्ल्स ! दिमाग़ चक्कर खाने लगता है। आँधी रोग हो जाता है। इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे। एक ही नाम के पीछे दोयम, सोयम, चहारुम, पंजुम लगाते चले गए। मुझसे पूछते, तो दस लाख नाम बता देता और ज्यॉमेट्री तो बस खुदा की पनाह
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Munshi Premchand (शतरंज के खिलाडी और अन्य कहानियाँ)
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क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को पता न चला, क्या बीमारी है। कहती भी तो कौन सुनने वाला था। दिल पर जो बीतती थी, वह दिल ही में सहती और जब न सहा गया, तो संसार से विदा हो गई। अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही प्रसन्न है। उसके अब्बाजान रुपये कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियाँ लेकर आएँगे। अम्मीजान अल्लामियाँ के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीज़ें लाने गई हैं, इसलिए हामिद प्रसन्न है। आशा तो बड़ी चीज़ है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है। हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी-धुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है, फिर भी वह प्रसन्न है। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान नियामतें लेकर आएँगी, तो वह दिल के अरमान निकाल लेगा। तब देखेगा महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी कहाँ से उतने पैसे निकालेंगे। अभागिनी अमीना अपनी
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Munshi Premchand (ईदगाह)
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त्यागी दो प्रकार के होते हैं। एक वह जो त्याग में आनंद मानते हैं, जिनकी आत्मा को त्याग में संतोष और पूर्णता का अनुभव होता है, जिनके त्याग में उदारता और सौजन्य है। दूसरे वह, जो दिलजले त्यागी होते हैं, जिनका त्याग अपनी परिस्थितियों से विद्रोह-मात्र है, जो अपने न्यायपथ पर चलने का तावान संसार से लेते हैं, जो खुद जलते हैं इसलिए दूसरों को भी जलाते हैं। अमर इसी तरह का त्यागी था।
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Munshi Premchand (कर्मभूमि)
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रत्नजटित, बिजली से जगमगाती मूर्ति देखकर मेरे मन में ग्लानि उत्पन्न ह ई। इस रुप में भी प्रेम का निवास हो सकता है? मैंने तो रत्नों में दर्प और अहंकार ही भरा देखा है। मुझे उस वक्त यही याद न रही, कि यह एक करोड़पति सेठ का मंदिर है और धनी मनुष्य धन में लोटने वाले ईश्वर ही की कल्पना कर सकता है। धनी ईश्वर में ही उसकी श्रद्धा हो सकती है। जिसक पास धन नहीं, वह उसकी दया का पात्र हो सकता है, श्रद्धा का कदापि नहीं।
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Munshi Premchand (Mansarovar - Part 1 (Hindi))
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मेरे सामने वही यमुना का तट था, गुल्म-लताओं का घूँघट मुँह पर डाले हुए। वही मोहिनी गउएँ थीं, वही गोपियों की जल-क्रीड़ा, वहीं वंशी की मधुर ध्वनि, वही शीतल चाँदनी और वहीं प्यारा नन्दकिशोर! जिसके मुख-छवि में प्रेम और वात्सल्य की ज्योति थी, जिसके दर्शनों ही से हृदय निर्मल हो जाते थे।
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Munshi Premchand (Mansarovar - Part 1 (Hindi))